छन्द 12
छन्द का अर्थ है-‘बन्धन’। ‘बन्धनमुक्त’ रचना को गद्य कहते हैं और बन्धनयुक्त को पद्य। छन्द प्रयोग के कारण ही रचना पद्य कहलाती है और इसी कारण उसमें अद्भुत संगीतात्मकता उत्पन्न हो जाती है। दूसरे शब्दों में, मात्रा, वर्ण, यति (विराम), गति (लय), तुक आदि के नियमों से बँधी पंक्तियों को छन्द कहते हैं।
छन्द के छः अंग हैं-
- वर्ण,
- मात्रा,
- पाद या चरण,
- यति,
- गति तथा
- तुक
(1) वर्ण-वर्ण दो प्रकार के होते हैं—(क) लघु और (ख) गुरु। ह्रस्व वर्ण | अ, इ, उ, ऋ, चन्द्रबिन्दु ] को लघु और दीर्घ वर्ण ( आ, ई, ऊ, अनुस्वार (.), विसर्ग (:)] को गुरु कहते हैं। इनके अतिरिक्त संयुक्त वर्ण से पूर्व का और हलन्त वर्ण से पूर्व का वर्ण गुरु माना जाता है। हलन्त वर्ण की गणना नहीं की जाती। कभी-कभी लय में पढ़ने पर गुरु वर्ण भी लघु ही प्रतीत होता है। ऐसी स्थिति में उसे लघु ही माना जाता है। कभी-कभी पाद की पूर्ति के लिए अन्त के वर्ण को गुरु मान लिया जाता है। लघु वर्ण का चिह्न खड़ी रेखा I’ और दीर्घ वर्ण का चिह्न अवग्रह ‘δ’ होता है।
(2) मात्रा--मात्राएँ दो हैं-ह्रस्व और दीर्घ। किसी वर्ण के उच्चारण में लगने वाले समय के आधार पर मात्रा का निर्धारण होता है। ह्रस्व वर्ण (अ, इ, उ आदि) के उच्चारण में लगने वाले समय को एक मात्राकाल तथा दीर्घ वर्ण आदि के उच्चारण में लगने वाले समय को दो मात्राकाल कहते हैं। मात्रिक छन्दों में ह्रस्व वर्ण की एक और दीर्घ वर्ण की दो मात्राएँ गिनकर मात्राओं की गणना की जाती है।
(3) पाद या चरण–प्रत्येक छन्द में कम-से-कम चार भाग होते हैं, जिन्हें चरण या पाद कहते हैं। कुछ ऐसे छन्द भी होते हैं, जिनमें चरण तो चार ही होते हैं, पर लिखे वे दो ही पंक्तियों में जाते हैं; जैसे—दोहा, सोरठा, बरवै आदि। कुछ छन्दों में छ: चरण भी होते हैं; जैसे-कुण्डलिया और छप्पय।
(4) यति ( विराम)-कभी-कभी छन्द का पाठ करते समय कहीं-कहीं क्षणभर को रुकना पड़ता है, उसे यति कहते हैं। उसके चिह्न ‘,’ ‘I’ ‘II’, ‘?’ और कहीं-कहीं
विस्मयादिबोधक चिह्न !’ होते हैं।
(5) गति ( लय)-पढ़ते समय कविता के कर्णमधुर प्रवाह को गति कहते हैं।
(6) तुक-कविता के चरणों के अन्त में आने वाले समान वर्गों को तुक कहते हैं, यही अन्त्यानुप्रास होता है।
गण-लघु-गुरु क्रम से तीन वर्षों के समुदाय को गण कहते हैं। गण आठ हैं-यगण, मगण, तगण, रगण, जगण, भगण, नगण, संगण। ‘यमाताराजभानसलगा’ इन गणों को याद करने का सूत्र है। इनका स्पष्टीकरण अग्रलिखित है
छन्दों के प्रकार-छन्द दो प्रकार के होते हैं—(1) मात्रिक तथा (2) वर्णिक। जिस छन्द में मात्राओं की संख्या का विचार होता है वह मात्रिक और जिसमें वर्गों की संख्या का विचार होता है, वह वर्णिक कहलाता है। वर्णिक छन्दों में वर्गों की गिनती करते समय मात्रा-विचार (ह्रस्व-दीर्घ का विचार) नहीं होता, अपितु वर्गों की संख्या-भर गिनी जाती है, फिर चाहे वे ह्रस्व वर्ण हों या दीर्घ; जैसे-रम, राम, रामा, रमा में मात्रा के हिसाब से क्रमश: 2, 3, 4, 3 मात्राएँ हैं, पर वर्ण के हिसाब से प्रत्येक शब्द में दो ही वर्ण हैं।
मात्रिक छन्द
1. चौपाई [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 18]
लक्षण (परिभाषा)-चौपाई एक सम-मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। अन्त में जगण (I δ I) और तगण (δ δ I) के प्रयोग का निषेध है; अर्थात् चरण के अन्त में गुरु लघु (δ I) नहीं होने चाहिए। दो गुरु (δ δ), दो लघु (I I), लघु-गुरु (I δ) हो सकते हैं।
2. दोहा [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
लक्षण (परिभाषा)—यह अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके पहले और तीसरे (विषम) चरणों में 13, 13 मात्राएँ और दूसरे तथा चौथे (सम) चरणों में 11, 11 मात्राएँ होती हैं। अन्त के वर्ण गुरु और लघु होते हैं; यथा–
3. सोरठा [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
लक्षण (परिभाषा)-यह भी अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके पहले और तीसरे चरण में 11 तथा दूसरे और चौथे चरण में 13 मात्राएँ होती हैं। यह दोहे का उल्टा होता है; यथा—
4. कुण्डलिया [2009, 11, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
लक्षण (परिभाषा)-कुण्डलिया एक विषम मात्रिक छन्द है जो छ: चरणों का होता है। दोहे और रोले को क्रम से मिलाने पर कुण्डलिया बन जाता है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। प्रथम चरण के प्रथम शब्द की अन्तिम चरण के अन्तिम शब्द के रूप में तथा द्वितीय चरण के अन्तिम अर्द्ध-चरण की तृतीय चरण के प्रारम्भिक अर्द्ध-चरण के रूप में आवृत्ति होती है; यथा—
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 नीचे लिखे पद्यों में निहित छन्द का नाम और परिभाषा (लक्षण) लिखिए-
प्रश्न (क)
बरबस लिये उठाइ उर, लायहु कृपानिधान ।
भरत राम को मिलनि लखि, बिसरे सबहि अपान ।।
उत्तर
दोहा
प्रश्न (ख)
अबहूँ मया दिस्टि करि, नाह निठुर! घर आउ ।
मंदिर ऊजर होत है, नव कै आइ बसाउ ।।
उत्तर
दोहा
प्रश्न (ग)
नील सरोरुह स्याम, तरुन अरुन बारिज नयन ।
करउ सो मम उर धाम, सदा छीर सागर सयन ||
उत्तर
सोरठा
प्रश्न (घ)
राम नाम मनि दीप धरि, जीह देहरी द्वार ।।
तुलसी भीतर बाहिरौ, जो चाहसि उजियार ||
उत्तर
दोहा
प्रश्न (ङ)
मंगल सगुन होहिं सब काहू। फरकहिं सुखद बिलोचन बाहू ।।
भरतहिं सहित समाज उछाहू। मिलिहहिं रामु मिटहि दुख दाहू ।।
उत्तर
चौपाई
प्रश्न (च)
निरखि सिद्ध साधक अनुरागे। सहज सनेहु सराहन लागे ।।
होत न भूतल भाउ भरत को। अचर सचर चर अचर करत को ।।
उत्तर
चौपाई
प्रश्न (छ)
राम सैल सोभा निरखि, भरत हुदन अति प्रेम ।।
तापस तप फलु पाइ जिमि, सुखी सिखों नेम् ।।
उत्तर
दोहा
प्रश्न (ज)
सकल मलिन मन दीन दुखारी ।।
देखीं सानु आन अनुसारी ।।
उत्तर
चौपाई
प्रश्न (झ)
समुझि मातु करजब सकुचाही। करत कुतरक कोटि मन माही ।।
रामु लखनु सिय सुनि मन जाऊँ। उठि जनि अनत जाहिं ताजि ठाऊँ ।।
उत्तर
चौपाई
प्रश्न (ञ)
मंगल भवन अमंगलहारी। उमा सहित जेहिं जपत पुरारी ।।
उत्तर
चौपाई
[ संकेत-छन्दों की परिभाषा (लक्षण) के लिए ‘छन्द’ प्रकरण के अन्तर्गत सम्बन्धित छन्द का अध्ययन करें।]
प्रश्न 2
निम्नलिखित में कौन-सा छन्द है ? मात्राओं की गणना करके अपने कथन की पुष्टि कीजिए–
(i) नील सरोरुह स्याम, तरुन अरुन वारिज नयन |
करहु सो मम उर धाम, सदा छीर सागर सयन ।।
(ii) ज न होत जग जनम भरत को। सकल धरम धुर धरनि धरत को ।
(iii) मो सम दीन न दीन हित, तुम समान रघुवीर ।
अस बिचारि रघुबंस मनि, हरहु बिषम भवभीर ।।
(iv) यह वर माँगउ कृपा निकेता | बस हृदय श्री अनुज समेता ।।
(v) मंत्री गुरु अरु बैद जो, प्रिय बोलहिं भय आस ।।
राज, धरम, तन तीनि कर, होई बेगिही नास ||
(vi) कौ कुबत जग कुटिलता, तर्जी न दीन दयाल ।।
दुःखी होहुगे सरल हिय, बसत त्रिभंगीलाल ।।
(vii) श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि ।
बरनउ रघुवर, विमल जस, जो दायक फल चारि ।।
(viii) सुनि केवट के बैन, प्रेम लपेटे अटपटे ।
बिहँसे करुणा ऐन, चितै जानकी लखन तन ।।
(ix) रकत ढुरा आँसू गरा, हाइ भएउ सब संख।
धनि सारस होइ गरि मुई, पीउ समेटहि पंख ।।
(x) बतरस-लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय ।
सह करै भौहनि हँस, दैन कहें नटि जाय ।।
उत्तर
प्रश्न 3
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए—
(क) सोरठा, दोहा और चौपाई छन्दों में से किसी एक का उदाहरण लिखकर उसका लक्षण
बत
(ख) दोहा और सोरठा का अन्तर स्पष्ट करते हुए सोरठा का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
1. चौपाई [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 18]
लक्षण (परिभाषा)-चौपाई एक सम-मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। अन्त में जगण (I δ I) और तगण (δ δ I) के प्रयोग का निषेध है; अर्थात् चरण के अन्त में गुरु लघु (δ I) नहीं होने चाहिए। दो गुरु (δ δ), दो लघु (I I), लघु-गुरु (I δ) हो सकते हैं।
2. दोहा [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
लक्षण (परिभाषा)—यह अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके पहले और तीसरे (विषम) चरणों में 13, 13 मात्राएँ और दूसरे तथा चौथे (सम) चरणों में 11, 11 मात्राएँ होती हैं। अन्त के वर्ण गुरु और लघु होते हैं; यथा–
3. सोरठा [2009, 10, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
लक्षण (परिभाषा)-यह भी अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके पहले और तीसरे चरण में 11 तथा दूसरे और चौथे चरण में 13 मात्राएँ होती हैं। यह दोहे का उल्टा होता है; यथा—