Up Class 10 संस्कृत : कथा – नाटक कौमुदी

Chapter 7 वयं भारतीयाः (कथा – नाटक कौमुदी) परिचय सभी धर्म मानव की एकता में विश्वास रखते हैं और सभी धर्मों को प्राप्तव्य भी एक है। सत्य, दया, परोपकार, शुद्धता आदि बातों का उपदेश सभी धर्मों में दिया गया है। कोई भी धर्म सदाचार और नैतिकता का विरोध नहीं करता। धर्म के मूल-तत्त्व को न …

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Chapter 6 ज्ञानं पूततरं सदा (कथा – नाटक कौमुदी) परिचय संस्कृत कथा-साहित्य के शिरोमणि, कश्मीरी पण्डित सोमदेव की अनुपम रचना ‘कथासरित्सागर’ है। इनके स्थिति-काल और परिवार का कोई भी परिचय अद्यावधि उपलब्ध नहीं है। इन्हें कश्मीर के राजा अनन्त का आश्रित माना जाता है तथा उन्हीं के स्थिति-काल से इनके स्थिति-काल का भी अनुमान किया …

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Chapter 5 भोजस्य शल्यचिकित्सा (कथा – नाटक कौमुदी) परिचय प्रस्तुत पाठ बल्लालसेन द्वारा रचित ‘भोज-प्रबन्ध’ नामक कृति से संगृहीत है। इस ग्रन्थ को ऐतिहासिक दृष्टि से कोई खास महत्त्व नहीं है, किन्तु साहित्यिक दृष्टि से इसे ग्रन्थ की महत्ता स्वीकार की गयी है। इस ग्रन्थ में संस्कृत के सभी प्रसिद्ध कवियों को राजा भोज  की …

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Chapter 4 यौतुकः पापसञ्चयः (कथा – नाटक कौमुदी) परिचय यौतुक शब्द का हिन्दी पर्याय दहेज है। आज यह भारतीय समाज का कोढ़ बना हुआ है। आज वधू को उसके गुणों के आधार पर नहीं, अपितु उसके द्वारा लाये गये दहेज के आधार पर सम्मान दिया जाता है। प्रस्तुत नाटक में दहेज पर कुठाराघात किया गया …

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Chapter 3 धैर्यधनाः हि साधवः (कथा – नाटक कौमुदी) परिचय प्रस्तुत पाठ एक जातक-कथा है। जातक-कथाओं का सम्बन्ध सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) के पूर्वजन्म से है। बौद्ध विद्वानों का मानना है कि सिद्धार्थ को एक ही जन्म में बोधि प्राप्त नहीं हुई थी अनेक पूर्व जन्मों में दया, करुणा, परोपकार आदि का अभ्यास करके उन्होंने बोधि …

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Chapter 2 कारुणिको जीमूतवाहनः (कथा – नाटक कौमुदी) परिचय प्रस्तुत पाठ महाकवि हर्ष द्वारा विरचित ‘नागानन्द’ नामक नाटक से संगृहीत है। इसमें जीमूतवाहन नामक विद्याधर-राजकुमार के द्वारा आत्मोत्सर्ग करके शंखचूड़ नामक सर्प को गरुड़ से बचाने का वर्णन है। नाटक में पाँच अंक हैं। इस नाटक पर बौद्ध धर्म का  प्रभाव परिलक्षित होता हैं। बौद्ध …

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Chapter 1 महात्मनः संस्मरणानि (कथा – नाटक कौमुदी) परिचय भारत की पावन-भूमि पर समय-समय पर ऐसे महापुरुष जन्म लेते रहे हैं, जिन्होंने अपने संघर्षशील जीवन से न केवल भारत का कल्याण किया, वरन् सम्पूर्ण विश्व को एक नवीन दिशा प्रदान की। परतन्त्रता की स्थिति में भारत को स्वतन्त्र कराने हेतु इस पावन-भूमि पर  जन्म लेने …

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