Up class 9 संस्कृत : कथा-नाटक कौमुदी

Chapter 14 षड्रिपुविजय  (कथा – नाटक कौमुदी) परिचय– प्रस्तुत पाठ ‘प्रबोधचन्द्रोदयम्’ नामक नाटक से उद्धृत है। यह एक रूपकात्मक नाटक है और श्रीकृष्ण मिश्र के द्वारा प्रणीत है। कृष्ण मिश्र चन्देल राजा कीर्तिवर्मा के शासनकाल में हुए थे। इनका समय 1050 ईसवी के लगभग माना जाता है। नाटक की प्रस्तावना में यह उल्लिखित है कि राजा …

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Chapter 13 विद्यादानम्  (कथा – नाटक कौमुदी) परिचय- भारतीय वाङ्मय में वेदों और पुराणों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वेदों की अपेक्षा पुराण सरल, सरस और बोधगम्य हैं। पुराणों में उपदेश कथाओं के माध्यम से दिये गये हैं। ये कथाएँ काल्पनिक न होकर वास्तविक हैं। पुराणों को इतिहास भी माना जाता है। पुराण’ शब्द का अर्थ …

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Chapter 12 यज्ञरक्षा (कथा – नाटक कौमुदी) परिचय– महर्षि वाल्मीकि द्वारा विरचित ‘रामायण’ तथा महामुनि वेदव्यास द्वारा विरचित ‘महाभारत’ दोनों ही ग्रन्थ कवियों और नाटककारों के लिए, अति प्राचीन काल से ही, प्रेरणा-स्रोत रहे हैं। ये ग्रन्थ न केवल संस्कृत कवियों के लिए अपितु प्राकृत, अपभ्रंश आदि के कवियों के लिए भी आश्रय-ग्रन्थ रहे हैं। …

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Chapter 11 बुद्धिर्यस्य बलं तस्य (कथा – नाटक कौमुदी) परिचय– संस्कृत-साहित्य में कथाओं के माध्यम से न केवल मानव अपितु पशु-पक्षियों की सहज प्रकृति पर भी पर्याप्त सामग्री प्राप्त होती है। ये कथाएँ प्रायः नीतिपरक, उपदेशात्मक और मनोरंजक होती हैं। इस प्रकार के कथा-ग्रन्थों में शुक-सप्तति’ का उल्लेखनीय स्थान है। इसमें 70 कथाओं का संग्रह किया …

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Chapter 10 त्याग एवं परो धर्मः (कथा – नाटक कौमुदी) परिचय-हमारे देश की रत्नगर्भा वसुन्धरा में स्थित राजस्थान की धरती सदा से ही वीर-प्रसविणी रही है। विदेशी आक्रमणों के झंझावात को मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश ने जिस अदम्य साहस एवं वीरता से झेला है उसकी मिसाल विश्व-इतिहास में अन्यत्र नहीं मिलती। महाराणा प्रताप इसी राजवंश रूपी …

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Chapter 9 प्राचीनाः पञ्चवैज्ञानिकाः (कथा – नाटक कौमुदी) परिचय- मनुष्य के मन में ब्रह्माण्ड के ग्रहों, उपग्रहों, नक्षत्रादि को देखकर इनके सम्बन्ध में सृष्टि , के प्रारम्भ से ही जिज्ञासा रही है। भारत के ज्योतिर्विद् आचार्यों ने बड़े परिश्रम से इनके बारे में सूक्ष्म जानकारी प्राप्त की। इस दिशा में सबसे पहले आचार्य वराहमिहिर ने ईसा …

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Chapter 8 भीमसेनप्रतिज्ञा परिचय- भरतमुनि ने अपने नाट्य-शास्त्र में लिखा है कि ब्रह्माजी ने ऋग्वेद से ‘संवाद’, सामवेद से ‘संगीत’, यजुर्वेद से ‘अभिनय तथा अथर्ववेद से ‘रस’ के तत्त्वों को लेकर नाट्यवेद’ के नाम से पंचम वेद की रचना की। संस्कृत नाटकों की रचना के मुले-स्रोत रामायण, महाभारत तथा अन्य पौराणिक ग्रन्थ हैं। इनके आधार …

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Chapter 7 जडभरतः (कथा – नाटक कौमुदी) परिचय- भारतीय वाङमय में पुराणों का विशिष्ट स्थान है। इनकी संख्या कुल अठारह मानी गयी है। पुराणों में श्रीमद्भागवत पुराण एक अनुपम, ऐतिहासिक एवं धार्मिक ग्रन्थ है। इसमें समस्त पुराणों का सार संगृहीत है। इसीलिए अन्य पुराणों की तुलना में इसका सर्वाधिक प्रचार-प्रसार है। इसमें बारह स्कन्ध और अठारह …

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Chapter 6 श्रम एव विजयते (कथा – नाटक कौमुदी) परिचय- संस्कृत वाङमय में पंचतन्त्र, हितोपदेश आदि की उपादेय कथाएँ विपुल संख्या में प्राप्त हैं। वेद, पुराणादि की कथाएँ जो भारतीय धर्म-परम्परा की परिचायक हैं, उनसे भी समाज अत्यधिक लाभान्वित हुआ है। आज के परिवर्तनशील परिप्रेक्ष्य में जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जो परिवर्तन दृष्टिगोचर हो रहे …

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Chapter 5 क्षीयते खलसंसर्गात् (कथा – नाटक कौमुदी) परिचय–प्रस्तुत कॅथा ‘हितोपदेश’ नामक ग्रन्थ से संकलित की गयी है। इसके लेखक नारायण पण्डित हैं। बंगाल के राजा धवलचन्द्र ने इसका संकलन कराया था। इस कथा-संग्रह में रोचक कथाओं के माध्यम से नीति और धर्म की शिक्षा दी गयी है। कथाओं की रोचकता, सरलता और उपदेशात्मकता के कारण …

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