Chapter 1 खून का रिश्ता
खून का रिश्ता – पाठ का सारांश/कथावस्तु
(2018, 13)
बाबूजी एवं वीरजी में वैचारिक मतभेद
आधुनिक दृष्टिकोण वाला वीरजी एम. ए पास नवयुवक है, जो सगाई, ब्याह आदि अवसरों पर धन की बर्बादी एवं किसी भी प्रकार के आडम्बर का विरोधी है, जबकि परम्परागत सोच वाले बाबूजी आडम्बर प्रिय एवं दहेज के समर्थक लगते हैं। पीरजी अपनी सगाई में किसी तरह का आडम्बर एवं दिखावा पसन्द नहीं करता है, इसलिए वह सदा रुपये में सगाई करने तथा सगाई में केवल बाबूजी के जाने के पक्ष में है, जबकि बाबूजी अपने धनी सम्बन्धियों को सगाई में ले जाने के पक्ष में हैं। वीरजी बाबूजी की बात का विरोध करते हुए अपनी बात पर अडिग रहते हैं।
चाचा मंगलसेन का तय हुआ जाना
जब बाबूजी ने पगड़ी खोल कर अपने सफ़ेद बालों की दुहाई देते हुए कुछ लोगों को साथ ले जाने की बात कही, तो वीरजी अपने चाचा मंगलसेन को बाबूजी के साथ गाने के लिए कहता है। मंगलसेन बाबूजी का चचेरा भाई है, जो फौज से रिटायर होने के बाद बाबूजी के साथ ही रहता है और घर का काम करता है। गरीब मंगलसेन को बाबूजी बात पर अपमानित करते हैं तथा उसे उचित सम्मान नहीं देते, जो वीरजी को बुरा लगता है। मंगलसेन को विश्वास था कि वह सगाई में ज़रूर जाएगा और उसका विश्वास साकार हो गया।
समधी जी द्वारा सगाई देना
बाजी और मंगलसेन तैयार होकर अपने होने वाले समधी के घर पहुंचे, जहां उन दोनों की खूब आवभगत हुई। सगाई देने के समय बादाम से भरे कितने ही थाल समधी जी द्वारा लाए गए पर बाबूजी ने केवल सवा रुपये लेने की ही बात कही। अन्त में समधी जी अन्दर से चाँदी का एक थाल लाए जिसमें चाँदी की तीन कटोरियों एवं चॉदी के तीन चम्मच रखे हुए थे। एक कटोरी में केसर, दूसरी में राँगला धागा और तीसरी में चाँदी का रुपया एवं चवन्नी रखी हुई थी।
वापस आने पर एक चम्मच गायब मिलना
थाली को अपने कन्धों पर रखकर मंगलसेन घर पहुँचा। वीरजी की माँ ने रुमाल हटाकर देखा कि चॉदी की कटोरियाँ तो तीन थीं, लेकिन चम्मच दो ही थे। सभी को आश्चर्य हुआ की तीसरा चम्मच कहाँ गया?
मंगलसेन की तलाशी होना
चाँदी का एक चम्मच गायब हो जाने पर सभी को गरीब मंगलसेन पर सन्देह हुआ। मंगलसेन द्वारा बार-बार इनकार करने के बावजूद आँगन में उसे खड़ा कर उसकी तलाशी ली गई, तो उसकी जेब में मैला रुमाल, रीक्षियों की गल्ली, माचिस और छोटी-सी पेन्सिल के अलावा कुछ न मिला। तलाशी लिए जाने से मंगलसेन अत्यन्त अपमानित महसूस करने लगा। उसकी साँस फूलने लगी और वह खड़-खड़ा गिर गया। घर के नौकर सन्तू ने उसे छज्जे पर लिटा दिया।
गायब चम्मच का मिल जाना
ढोलक की आवाज़ सुनकर पड़ोस की महिलाएँ घर में इकट्ठा होने लगीं, तभी वीरजी का साला आकर चोंदी को चम्मच मनोरमा को देकर चला गया। दूसरी और सगाई में जाने सम्बन्धी मुद्दे पर सन्तू ने मंगलसेन से शर्त लगाई थी, जिसे वह हार चुका था। सन्तू कहता है कि तनख्वाह मिलने पर वह शर्त की। रकम मंगलसैन को दे देगा। इसी बिन्दु पर कहानी समाप्त हो जाती है, लेकिन खून का रिश्ता तार-तार हो जाता है। मंगलसेन को यह समझ नहीं आता कि सगाई में उसका जाना उसके लिए सम्मान का सूचक था या अपमान का. क्योंकि सगाई में जाने के कारण ही उस पर चोरी का आरोप लगाया गया और अपमानित करके उसकी तलाशी ली गई।
‘खून का रिश्ता’ कहानी की समीक्षा/विवेचना
(2018, 17, 14)
वर्तमान समाज में टूटते रिश्तों की वास्तविकता बताने वाली कहानी ‘खून का रिश्ता’ की समीक्षा इस प्रकार है।
कथानक/विषय-वस्तु
बाबूजी का बेटा वीरजी अपनी सगाई मात्र सवा रुपये में करवाना चाहता है और सगाई में केवल एक आदमी को भेजना चाहता है, परन्तु उसके माता-पिता अपने पुत्र की सगाई अपनी प्रतिष्ठा के अनुसार धूमधाम से करना चाहते है, किन्तु उनका बेटा ऐसा नहीं करने देता है। वीरजी के एक चाचा मंगलसेन वृद्ध एवं विकलांग है, जो अपने भतीजे की सगाई में जाने के सपने देखते हैं। उनका नौकर सन्तु जब उनसे कहता है कि बाबूजी आपको सगाई में नहीं ले जाएँगे, तो वे उदास हो जाते हैं, कि अन्ततः उनकी भाभी, वीरजी और बाबूजी उन्हें ले जाने के लिए तैयार हो जाते हैं।
उनके पास सगाई में जाने के लिए ढंग के कपड़े भी नहीं हैं। फिर उनकी भाभी ने घुला हुआ पाजामा, बाबूजी की एक पगड़ी देकर उन्हें समधी के यहाँ जाने के लिए तैयार किया। वहाँ जाकर उनका सपना पूरा हो गया। सगाई में समधी के यहाँ से चॉदी की तीन कटौरी और दो चम्मच देखकर वीरजी की माँ को गुस्सा आ गया। वे बोलीं-‘समधी जी ने तीन चम्मच दिए होंगे; किन्तु एक चम्मच कहाँ गायब हो गया? सबको मंगलसेन पर ही शक होता है कि उन्होंने ही हेराफेरी की है। बाबूजी ने उन्हें दण्ड देने की भी बात की। कुछ ही देर में वीरजी का साला एक चम्मच लाकर दे देता है। इस प्रकार मंगलसेन पर लगा आरोप झूठा साबित हो जाता है तथा खून का रिश्ता टूटते टूटते जुड़ जाता है। इस प्रकार कहानी का कथानक विचारोत्तेजक एवं यथार्थपूर्ण है। मानसिक अन्तर्द्वन्द्व का उन्मूलन कर देना भीष्म साहनी की चिन्तन कला का अद्भुत गुण है। कहानी में सजीवता तथा तारतम्यता विद्यमान है।
पात्र और चरित्र-चित्रण
‘खून का रिश्ता’ कहानी में मानवीय दृष्टिकोण से सामाजिक एवं पारिवारिक सम्बन्धों की विवेचना की गई है। यह एक प्रकार से चरि-प्रधान कहानी है, जिसमें मानव चरित्र की प्रतिष्ठा ही मुख्य विषय है। कहानी के प्रमुख पात्र के रूप में वीरजी की चिन्तन-शैली को आधुनिक भारतीय जागरूक नवयुवक के प्रतिनिधि के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो अपनी भावी ज़िन्दगी को सँवारने के लिए दहेज रहित विवाह का आश्चर्यजनक निर्णय लेता है। वीरजी की माँ एक स्वस्थ एवं सन्तुष्ट गृहिणी की भूमिका में हैं, जिनका चरित्र परिस्थितियों के साथ-साथ विकास पाता है। वह कभी खून के रिश्ते की गरिमा को पहचानती एवं महत्त्व देती हैं, तो कभी उसकी उपेक्षा भी करती हैं। प्रस्तुत कहानी में चरित्र की सूक्ष्मता एवं चारित्रिक भगिमाओं का वैशिय यानि विविधतापूर्ण चित्रण दर्शनीय है। कहानी में पात्रों की यथार्थता को मनोवैज्ञानिक दृष्टि से प्रस्तुत किया गया है। चरित्र-चित्रण में विश्लेषणात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।
कथोपकथन अथवा संवाद
प्रस्तुत कहानी के संवाद पूर्ण नियन्त्रित तथा कौतूहल को उजागर करने वाले हैं। कथाकार ने इस कहानी में मुहावरों का प्रयोग करके संवादों को उत्कृष्ट बनाया है। वीरजी के दहेज विरोधी और माता-पिता के वात्सल्यपूर्ण चरित्र को उजागर करते संवाद है-” मैंने कह दिया, माँ! मेरी सगाई सवा रुपये में होगी और केवल बाबूजी सगाई डलवाने जाएँगे। जौ मंजूर नहीं हो तो अभी से “बस-बस, आगे कुछ मत कहना।” माँ ने झट से टोकते हुए कहा। फिर क्षुब्ध होकर बोली, “जो तुम्हारे मन में आए करो। आजकल कौन किसी की सुनता है। छोटा-सा परिवार और इसमें भी कभी कोई काम ढंग से नहीं हुआ। मुझे तो पहले ही मालूम था तुम अपनी करोगे……………………. ।”
देशकाल और वातावरण
कहानी में देशकाल और वातावरण में आँचलिक और स्थानीय रंग दिखता है। घटना और उससे सम्बन्धित परिस्थितियों का चित्रण सजीव रूप से तथा क्रमानुगत ढंग से किया गया है। समाज के टूटते सम्बन्धों का यथार्थ चित्रण वर्तमान वातावरण के परिप्रेक्ष्य में किया गया है। करुणा, आश्चर्य, प्रेम, वात्सल्य आदि की सरसता वातावरण के प्रभाव से सजीव हो गई है।
भाषा-शैली
भीष्म साहनी ने ‘खून का रिश्ता” कहानी को सरल एवं बोधगम्य भाषा द्वारा प्रभावशाली बनाया है। सूक्ष्म मानवीय सम्बन्धों को उजागर करने के लिए भाषा की सांकेतिकता से उसकी व्यंजना शक्ति बढ़ाई गई है। इस कहानी में शब्दों का चयन क्रियाओं के वेग और अन्तर्द्वन्द्व के विचार से किया गया है। इसमें अंग्रेजी और उर्दू शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। कहानी की सभी शैलियों, शब्दों का चयन प्रभावशाली ढंग से किया गया है। इस कहानी में बाबूजी की शैली अधिकांश स्थानों पर ओजपूर्ण है। नौकर सन्तू की शैली मंगलसेन के प्रति व्यंग्य प्रधान है।
उद्देश्य
प्रत्येक कहानी के मूल में एक केन्द्रीय भाव होता है, जो कहानी को मौलिक आधार प्रदान करता है। यही कहानी का उद्देश्य कहलाता है। साहनी जी ने ‘खून का रिश्ता’ कहानी के माध्यम से दहेज उन्मूलन करने, मानवता तथा भाईचारे की भावना को सुदृढ़ करने आदि पर जोर दिया है। व्यक्ति की वैचारिकता में उदारता, ममत्व और समता भाव संचारित करना कहानी का मूल उद्देश्य है। इस कहानी में वीरजी की माँ द्वारा अपने बेटे की खुशी के लिए समस्त आदर्शों का त्याग करना पाठकों को चकित करने वाला है।
शीर्षक
इस कहानी का शीर्षक कथानुसार सटीक व संगत है। यह शीर्षक कहानी के भाव, विचार, उद्देश्य व कथावस्तु की दृष्टि से पूर्णतः सार्थक व तर्कसंगत है। सम्पूर्ण कथा शीर्षक के इर्द-गिर्द घूमती हैं। इस कहानी के शीर्षक में व्यापकता, प्रतीकात्मकता का गुण भी विद्यमान है। इसी के साथ इस कहानी का शीर्षक सरल, आकर्षक, मौलिक, नवीन व कौतूहलपूर्ण बन जाता है। इस प्रकार कहा जा सकता है। कि शीर्षक की दृष्टि से यह कहानी सार्थक सिद्ध होती हैं।
वीरजी का चरित्र-चित्रण
(2018, 17, 16, 14, 12)
मानवीय संवेदनाओं के कथा शिल्पी भीष्म साहनी की कहानी ‘खून का रिश्ता’ में वीरजी प्रमुख पात्र है, जिसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ उल्लेखनीय हैं।
शिक्षित युवक
वीरजी एक आदर्श नवयुवक है, जो सही अर्थों में शिक्षित हैं। वह नवयुवक घर परिवार के लगभग सभी सदस्यों का विरोध करता हुआ अकेला महज के विरोध विद्रोह करता है तथा सभी को अपना सुसंगत निर्णय मानने के लिए बाध्य करता है। उसके कहने पर ही निर्धन चाचा मंगलसेन उसके पिताजी के साथ समधी के घर सगाई लेकर जा पाते हैं।
आडम्बर एवं दहेज में विश्वास नहीं
वीरजी सही अर्थों में शिक्षित एवं समझदार नवयुवक है। वह अपने विवाह में किसी भी तरह का आज़म्बर या दिखावापन पसन्द नहीं करता है। वह दहेज के रूप में शगुन का सिर्फ सवा रुपया स्वीकार करता है। वह विवाह में फिजूलखर्ची से भी दूर राना चाहता है। यही कारण है कि वह केवल पिताजी को और उनके अत्यधिक आग्रह के बाद साथ में चाचाजी को सगाई में जाने देता हैं।
समानता की भावना का पोषक
वीरजी एक सहदय युवक है, जो अपने गरीब चाचा मंगलसेन को भी बराबर का सम्मान दिलवाता है। उसी की ज़िद का परिणाम होता है कि पिताजी को उसकी बात मानकर मंगलसेन को ले जाने के लिए राज़ी होना पड़ता है। वह धनी रिश्तेदारों की जगह गरीब मंगलसेन को अधिक प्राथमिकता देता है।
व्यवहार कुशल एवं मृदु भाषी
वीरजी एक व्यवहारकुशल युवक है और घर के सभी सदस्यों के प्रति उसका व्यवहार बड़ा ही मृदु है। वह अपने गरीब चाचा मंगलसेन को अत्यधिक सम्मान देता है तथा झुककर उनके पाँव छूता है।
अपनी संगिनी के प्रति स्नेहिल भावना
वीरजी अपनी होने वाली पत्नी प्रभा के प्रति अत्यन्त स्नेहयुक्त भावनाएँ रखता है। वह रुमाल को देखकर ही प्रभा के स्पर्श की कल्पना से पुलकित होने लगता है। वह चाहता है कि रुमाल को हाथ में लेकर चूम ले।
खून के रिश्तों का महत्त्व देने वाला
वीरजी खून के रिश्ते की विशेषता/पवित्रता को समझने वाला आधुनिक बौद्धिक युवक है। वह सभी बातों को बौद्धिक एवं तार्किक रूप से परखने के बाद भी परम्परा की उस मर्यादा को नहीं भूलता, जो बड़ों के प्रति छोटों का कर्तव्य है।
इसके अतिरिक्त, वह इस भावना एवं संवेदना से भी अच्छी तरह परिचित है कि पून के रिश्ते वाले चाचा मंगलसेन अपने भतीजे की शादी से सम्बन्धित क्या-क्या ख्याल रखते होंगे। यही कारण है कि वह अपनी सगाई में चाचा को भेजने की जिद करता है और सफल होता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि वीरजी एक शिक्षित युवक, आडम्बर एवं दहेज विरोधी, समानता की भावना का पोषक होने के साथ-साथ खून के रिश्तों को महत्त्व देता है। का हितेषी भी है।