Chapter 12 केदारनाथ अग्रवाल (काव्य-खण्ड).
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए तथा काव्यगत सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए :
(अच्छा होता)
1. अच्छा होता ……………………………………………………………………… कच्चा होता।
सन्दर्भ – प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित ‘अच्छा होता’ नामक कविता से उधृत की गयी हैं।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि आदमी को एक अच्छा इन्सान बनाने की इच्छा करता है जो स्वार्थ रहित और सदचरित्र हो। क्योंकि आज व्यक्ति का चारित्रिक पतन हो चुका है। वह पूर्णतया स्वार्थी बन गया है। कवि एक स्वस्थ समाज की कल्पना करता है।
व्याख्या – कवि कहता है कि यह देश और समाज के लिए बहुत अच्छा होता जब एक आदमी दूसरे आदमी के हित में काम करता। वह स्वार्थी न होकर परोपकारी होता । उसकी नियति स्वच्छ और साफ होती तो यह देश और समाज के लिए बहुत अच्छा होता। वह स्वार्थी और दागी न होकर नि:स्वार्थी और निष्कलंक होता तो बहुत बेहतर होता। आगे वह यह भी कहता है कि व्यक्ति को सचरित्र का होना चाहिए। कहीं भी व्यक्ति के चरित्र में खोट नहीं होना चाहिए। क्योंकि एक सद्चरित्रवान व्यक्ति ही अच्छे आचरण का व्यवहार करने में सक्षम है। कवि एक स्वच्छ समाज की कल्पना की है जिसमें जन-साधारण को भी कष्ट न हो।
काव्यगत सौन्दर्य
- इन पंक्तियों में कवि एक स्वच्छ समाज की कल्पना की है, जो परोपकार एवं नि:स्वार्थपूर्ण हो।
- भाषा-सहज, स्वाभाविक एवं बोधगम्य।
2. अच्छा होता ……………………………………………………………………… बराती होता।
सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्य-पंक्तियाँ केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित ‘अच्छा होता’ शीर्षक कविता से उद्धृत हैं।
प्रसंग – इन पंक्तियों में भी कवि ने समाज को मानवता का सन्देश दिया है। वह एक भयमुक्त एवं स्वार्थ-रहित समाज की कल्पना करता है।
व्याख्या – कवि कहता है कि यह कितना अच्छा होता कि जब आदमी, आदमी के लिए मर-मिटने को तैयार रहता। आदमी, आदमी के दु:ख-दर्द में शामिल होता। दूसरे का हित करने वाला, दूसरे के सुख-दु:ख को बाँटने वाला व्यक्ति सबको प्रिय होता है। आज आदमी ईमानदारी की धज्जियाँ उड़ा रहा है, ठगी में लिप्त है। चारों तरफ मौत का ताण्डव है। यदि ये सब न होते तो समाज कितना खुशहाल होता । समाज में अमन-चैन कायम हो जाता समाज में आज इतनी ठगी है, हिंसा एवं रक्तपात है जिसके चलते एक स्वच्छ समाज की कल्पना साकार नहीं हो सकती है।
काव्यगत सौन्दर्य
- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने मानवता का संदेश दिया है। मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में, ”वही मनुष्य, मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे।”
- भाषा-सरल एवं बोधगम्य।
(सितार-संगीत की रात)
1. आग के ओंठ ……………………………………………………………………… चन्द्रमा के साथ।
सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्य-पंक्तियाँ केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित ‘सितार-संगीत की रात’ शीर्षक से उद्धृत हैं।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में सितार की बोल का वर्णन है।
व्याख्या – कवि कहता है कि सितार की ध्वनि जब निकलती है तो शहदयुक्त पंखुड़ियाँ खुलती चली जाती हैं। अँगुलियाँ नृत्य करने लगती हैं। रात के खुले आसमान पर चन्द्रमा के साथ जो ध्वनियाँ निकलती हैं, वह अत्यन्त मोहक होती हैं। कवि ने अग्निवत ओंठ के बोल की तुलना सितार के बोल से की है।
2. शताब्दियाँ ……………………………………………………………………… विचरण करती हैं।
सन्दर्भ – प्रस्तुत पद्य-पंक्तियाँ केदारनाथ अग्रवाल द्वारा रचित ‘सितार-संगीत की रात’ शीर्षक से उद्धृत हैं।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियों में संगीत का वर्णन है।
व्याख्या – कवि कहता है कि अनंत आकाश की खिड़कियों से मानो शताब्दियाँ झाँक रही हों। संगीत के इस समारोह में कौमार्य झलकता है। हर्ष रूपी हंस मानो दूध पर तैर रहा है। ऐसा मालूम पड़ रहा है जैसे धरती की सरस्वती हंस पर सवार होकर काव्य लोक में भ्रमण कर रही हैं।
प्रश्न 2.
केदारनाथ अग्रवाल की जीवनी एवं रचनाओं का परिचय दीजिए।
अथवा केदारनाथ की साहित्यिक सेवाओं एवं भाषा-शैली का उल्लेख कीजिए।
केदारनाथ अग्रवाल)
(स्मरणीय तथ्)
जन्म – 1 अप्रैल, सन् 1911 ई०।
मृत्यु – 22 जून, सन् 2000 ई०
जन्म – स्थान – बाँदा (कमासिन गाँव)।
पिता का नाम – श्री हनुमान प्रसाद
भाषा – सरल-सहज, सीधी-ठेठ।।
जीवन – परिचय-केदारनाथ अग्रवाल हिन्दी प्रगतिशील कविता के अन्तिम रूप से गौरवपूर्ण स्तम्भ थे। ग्रामीण परिवेश और लोकजीवन को सशक्त वाणी प्रदान करनेवाले कवियों में केदारनाथ अग्रवाल विशिष्ट हैं। परम्परागत प्रतीकों को नया अर्थ सन्दर्भ देकर केदार जी ने वास्तुतत्त्व एवं रूपतत्त्व दोनों में नयेपन के आग्रह को स्थापित किया है। अग्रवाल जी प्रज्ञा और व्यक्तित्व-बोध को महत्त्व देनेवाले प्रगतिशील सोच के अग्रणी कवि हैं।
अमर कवि केदारनाथ अग्रवाल बाँदा की धरती में कमासिन गाँव में 1 अप्रैल, 1911 ई० को पैदा हुए। इनकी माँ का नाम घसिट्टो एवं पिता हनुमान प्रसाद थे, जो बहुत ही रसिक प्रवृत्ति के थे। रामलीला वगैरह में अभिनय करने के साथ ब्रजभाषा में कविता भी लिखते थे। केदार बाबू ने काव्य के संस्कार अपने पिता से ही ग्रहण किये थे।
केदार बाबू की शुरुआती शिक्षा अपने गाँव कमासिन में ही हुई कक्षा तीन पढ़ने के बाद रायबरेली पढ़ने के लिए भेजे अये, जहाँ उनके बाबा के भाई गया बाबा रहते थे। छठी कक्षा तक रायबरेली में शिक्षा पाकर, सातवीं-आठवीं की शिक्षा प्राप्त करने के लिए कटनी एवं जबलपुर भेजे गये, वह सातवीं में पढ़ ही रहे थे कि नैनी (इलाहाबाद) में एक धनी परिवार की लड़की पार्वती देवी से विवाह हो गया, जिसे उन्होंने पत्नी के रूप में नहीं प्रेमिका के रूप में लिया-गया, ब्याह में युवती लाने/प्रेम ब्याह कर संग में लाया।
विवाह के बाद उनकी शिक्षा इलाहाबाद में हुई। नवीं में पढ़ने के लिए उन्होंने इविंग क्रिश्चियन कालेज में दाखिला लिया। इण्टर की पढ़ाई पूरी करने के बाद केदार बाबू ने बी० ए० की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला लिया।
यहाँ उनका सम्पर्क शमशेर और नरेन्द्र शर्मा से हुआ। घनिष्ठता बढ़ी। उनके काव्य संस्कारों में एक नया मोड़ आया। साहित्यिक गतिविधियों में सक्रियता बढ़ी। फलत: वह बी० ए० में फेल हो गये। इसके बाद वकालत पढ़ने कानपुर आये। यहाँ डी० ए० वी० कालेज में दाखिला लिया।
सन् 1937 में कानपुर से तकालत पास करने के बाद सन् 1938 में बाँदा आये इस समय उनके चाचा बाबू मुकुन्द लाल शहर के नामी वकीलों में से थे। उनके साथ रहकर वकालत करने लगे। वकालत केदार जी के लिए कभी पैसा कमाने का जरिया नहीं रही। कचहरी ने उनके दृष्टिकोण को मार्क्स के दर्शन के प्रति और आधारभूत दृढ़ता प्रदान की।
सन् 1963 से 1970 तक सरकारी वकील रहे। सन् 1972 ई० में बाँदा में अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के सम्मेलन का आयोजन किया। सन् 1973 ई० में उनके काव्य संकलन, ‘फूल नहीं रंग बोलते हैं के लिए उन्हें ‘सोवियतलैण्ड नेहरू’ सम्मान दिया गया। 1974 ई० में उन्होंने रूस की यात्रा सम्पन्न की। 1981 ई० में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थाने ने पुरस्कृत एवं सम्मानित किया। 1981 ई० में मध्य प्रदेश प्रगतिशील लेखक संघ ने उनके कृतित्व के मूल्यांकन के लिए महत्त्व केदारनाथ अग्रवाल’ का आयोजन किया। 1987 ई० में साहित्य अकादमी’ ने उन्हें उनके ‘अपूर्वा’ काव्य संकलन के लिए अकादमी सम्मान से सम्मानित किया। वर्ष 1990-91 ई० में मध्य प्रदेश शासन ने उन्हें मैथिलीशरण गुप्त सम्मान से सम्मानित किया। वर्ष 1986 ई० में मध्य प्रदेश साहित्य परिषद् द्वारा ‘तुलसी सम्मान’ से सम्मानित किया गया। वर्ष 1993-94 ई० में उन्हें बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय ने डी० लिट्० की उपाधि प्रदान की और हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग ने ‘साहित्य वाचस्पति’ उपाधि से सम्मानित किया, 22 जून, 2000 ई० को केदारनाथ अग्रवाल का 90 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया।
रचनाएँ – युग की गंगा (1947), नींद के बादल (1947), लोक और आलोक (1957), फूल नहीं रंग बोलते हैं। (1965), आग का आईना (1970), देश-देश की कविताएँ, अनुवाद (1970), गुल मेंहदी (1978), पंख और पतवार (1979), हे मेरी तुम (1981), मार प्यार की थापें (1981), कहे केदार खरी-खरी (1983), बम्बई का रक्त स्नान (1983), अपूर्वा (1984), बोले बोल अबोल (1985), जो शिलाएँ तोड़ते हैं (1985), जमुन जल तुम (1984), अनिहारी हरियाली (1990), खुली आँखें-खुले डैने (1992), आत्मगन्ध (1986), पुष्पदीप (1994), वसन्त में हुई प्रसन्न पृथ्वी (1996), कुहकी कोयल खड़े पेड़ की देह (1997), चेता नैया खेता (नयी कविताओं का संग्रह, परिमल प्रकाशन, इलाहाबाद)।
गद्य साहित्य – समय-समय पर (1970), विचार बोध (1980), विवेक-विवेचन (1980), यात्रा संस्मरण-बस्ती खिले गुलाबों की (1974), दतिया (उपन्यास, 1985), बैल बाजी मार ले गये (अधूरा उपन्यास) जो साक्षात्कार मध्य प्रदेश साहित्य परिषद् की पत्रिका में प्रकाशित।
काव्य-भाषा – प्रगितवादी काव्य में जनसाधारण की चेतना को स्वर मिला है, अतः उसमें एक सरसता विद्यमान है। छायावादी काव्य की भाँति उसमें दूरारूढ़ कल्पना की उड़ान नहीं है। प्रायः सभी कवियों ने काव्य-भाषा के रूप में जनप्रचलित भाषा को ही प्रगतिवादी काव्य में अपनाया है परन्तु केदार कुछ मामलों में अन्य कवियों से विशिष्ट हैं। उनकी काव्य-भाषा में जहाँ एक ओर गाँव की सीधी-ठेठ शब्दावली जुड़ गयी है, वहीं प्राकृतिक दृश्यों की प्रमुखता के कारण भाषा में सरलता और कोमलता है। गाँव की गन्ध, वन-फूलों की महक, आँवई भाषा, सरल जीवन और आसपास के परिवेश को मिलाकर केदारनाथ अग्रवाल ने कविता को प्रगतिशील बौद्धिक चेतना से जोड़े रखकर भी मोहकता बनाये रखी है।
समग्रतः केदारनाथ अग्रवाल सूक्ष्म मानवीय संवेदनाओं, प्रगतिशील चेतना और सामाजिक परिवर्तन के पक्षधर कवि हैं। संवेदनशील होकर कला के प्रति बिना आग्रह रखे वे काव्य की जनवादी चेतना से जुड़े हैं। ‘युग की गंगा’ में उन्होंने लिखा है-”अब हिन्दी की कविता न रस की प्यासी है, न अलंकार की इच्छुक है और न संगीत के तुकान्त की भूखी है।” इन तीनों से मुक्त काव्य का प्रणयन करनेवाले केदारनाथ अग्रवाल के काव्य में रस, अलंकार और संगीतात्मकता के साथ प्रवहमान है और भावबोध एवं गहन संवेदना उनके काव्य की अन्यतम विशेषता है।
प्रश्न 3.
‘अच्छा होता’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
‘अच्छा होता’ केदारनाथ अग्रवाल की चर्चित कविता है। प्रस्तुत कविता के माध्यम से कवि ने समाज में अमन-चैन एवं सच्ची मानवता की कामना की है। कवि कहता है कि व्यक्ति को व्यक्ति के सुख-दु:ख में साथ रहना चाहिए मनुष्य को मनुष्य के कष्ट में भागीदार होना चाहिए। व्यक्ति को नि:स्वार्थ होकर अपनी नियति को साफ रखना चाहिए। सच्चे आचरण वाला होना चाहिए। आदमी को ईमानदार एवं जनप्रिय होना चाहिए। आदमी को ठगी एवं हिंसा में लिप्त नहीं होना चाहिए। तभी एक स्वच्छ समाज की कल्पना की जा सकती है। यदि व्यक्ति एवं समाज का भला होगा तो राष्ट्र भी उन्मति के पथ पर अग्रसर होगा।
प्रश्न 4.
‘सितार-संगीत की रात’ कविता का सारांश एवं मूल भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
‘सितार-संगीत की रात’ समकालीन कवि केदारनाथ अग्रवाल की चर्चित रचना है। कवि कहता है कि सितार की ध्वनि जब निकलती है तो हर्ष एवं उल्लास का माहौल छा जाता है। शहद से परिपूर्ण पंखुड़ियाँ खुलती चली जाती हैं। अँगुलियाँ जब सितार पर थिरकती हैं तो ऐसा मालूम पड़ता है जैसे वे नृत्य कर रही हैं। हर्ष रूपी हंस दूध पर तैरने लगता है जिस पर सवार होकर सरस्वती काव्यलोक में भ्रमण करती हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
‘अच्छा होता’ में कवि ने मनुष्य की किन विशेषताओं को उजागर किया है?
उत्तर :
‘अच्छा होता’ कविता में कवि ने मनुष्य की सचरित्रता, ईमानदारी एवं नि:स्वार्थ जैसी विशेषताओं को उजागर किया है।
प्रश्न 2.
‘सितार-संगीत की रात’ कविता के आधार पर संगीत के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
सितार के बोल जब बोलते हैं तो शहद से युक्त पंखुड़ियाँ खुल जाती हैं। हर्ष रूपी हंस दूध पर तैरने लगता है, जिस हंस पर सवार होकर सरस्वती काव्य लोक में विचरण करती हैं।
प्रश्न 3.
‘शहद की पंखुड़ियों’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर :
शहद की पंखुड़ियों से कवि का आशय है-ऐसी पंखुड़ियाँ जो शहद से भरी हुई हैं।
प्रश्न 4.
‘शताब्दियाँ झाँकती हैं’ कवि के इस कथन में छिपे भाव की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
‘शताब्दियाँ झाँकती हैं’ का अर्थ है-ऐसे तथ्य जो बरसों पहले घटित हुए हों, उनकी स्पष्ट झाँकी झलकती है।
प्रश्न 5.
‘हृदय की थाती’ का आशय समझाइए।
उत्तर :
हृदय की थाती का आशय है-हृदय को प्रिय
प्रश्न 6.
‘चरित्र का कच्चा’ का क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
चरित्र का कच्चा का तात्पर्य है-चरित्रहीन मनुष्य को सचरित्र होना चाहिए जिससे वह मानवीय आचरण कर सके।
प्रश्न 7.
‘कौमार्य बरसता है’ शब्दों द्वारा कवि क्या बताना चाहता है?
उत्तर :
कुँआरापन झलकता है।
प्रश्न 8.
‘मौत का बाराती’ कहने का क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
आज समाज में हिंसा एवं रक्तपात मचा हुआ है। बेगुनाह लोग मारे जा रहे हैं। कवि को आशंका है कि यह सम्पूर्ण समाज कहीं मौत का बराती न बन जाय।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
केदारनाथ अग्रवाल किस काल के कवि हैं?
उत्तर :
आधुनिक (समकालीन) काल के।
प्रश्न 2.
केदारनाथ अग्रवाल मूलतः कवि हैं या लेखक?
उत्तर :
कवि।
प्रश्न 3.
केदारनाथ अग्रवाल किस धारा के कवि हैं?
उत्तर :
समकालीन धारा के।
प्रश्न 4.
‘अच्छा होता’ कविता में ‘ठगैता ठाकुर’ को अर्थ क्या है?
उत्तर :
वर्तमान समाज में ठगी का बोलबाला है। आदमी आदमी को ही ठगने में लगा हुआ है। वह अपनी सारी दिगामी ऊर्जा दूसरे को परेशान करने में लगा रहा है।
प्रश्न 5.
‘हर्ष का हंस’ में अलंकार बताइए।
उत्तर :
अनुप्रास अलंकार।
प्रश्न 6.
‘अच्छा होता’ कविता कवि के किस काव्य में संकलित है?
उत्तर :
अपूर्वा में।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से सही वाक्य के सम्मुख सही (✓) का चिह्न लगाइए
(अ) अच्छा होता’ कविता में कवि ने नैतिक मनुष्य की अभिलाषा की है। (✓)
(ब) ‘अच्छा होता’ कविता में कवि ने मनुष्य को ठगैत ठाकुर बताया है। (✗)
(स) दगैल-दागी मनुष्य ही नियति का सच्चा होता है। (✗)
(द) अनंत की खिड़कियों से शताब्दियाँ झाँकती हैं। (✓)
काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध
1.
निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए
(अ) अगर आदमी आदमी के लिए।
(ब) राग पर राग करते हैं किलोल।
(स) संगीत के समारोह में कौमार्य बरसता है।
(द) हर्ष का हंस दूध पर तैरता है।
उत्तर :
(अ) काव्य-सौन्दर्य-
- यदि आदमी आदमी के लिए जिये-मरे तथा उसके सुख-दु:ख का साथी बना रहे तो यह समाज खुशहाल बन सकता है।
- अलंकार-अनुप्रास
- भाषा-सरल एवं बोधगम्य।
(ब) काव्य-सौन्दर्य-
- जब बीणा या सितार के बोल निकलते हैं तो यह अत्यन्त आकर्षक होता है।
- राग पर राग में अनुप्रास अलंकार है।
- भाषा-सरल, सहज एवं बोधगम्य
(स) काव्य-सौन्दर्य-
- संगीत के समारोह में कौमार्य स्पष्ट झलकता है।
- संगीत के समारोह में अनुप्रास अलंकार है।
- भाषा–सरल एवं स्वाभाविक है।
(द) काव्य-सौन्दर्य-
- हर्ष रूपी हंस मानो दूध पर तैर रहा है।
- हर्ष का हंस में अनुप्रास अलंकार है।
- भाषा-सहज एवं स्वाभाविक है।
2.
‘आग के ओंठ’ का काव्य-सौन्दर्य बताइए।
उत्तर :
काव्य-सौन्दर्य-
- ऐसा ओंठ जिससे आग की भाँति वचन निकलते हों।
- आग के ओंठ में अनुप्रास अलंकार है।
- भाषा-सरल एवं बोधगम्य।
3.
निम्नलिखित पंक्तियों में स्थायी भाव सहित रस का नाम लिखिए–
(अ) शताब्दियाँ झाँकती हैं, अनंत की खिड़कियों से।
(ब) हर्ष का हंस दूध पर तैरता है, जिस पर सवार भूमि की सरस्वती काव्य लोक में विचरण करती हैं।
उत्तर :
(अ) शान्त रस-निर्वेद
(ब) श्रृंगार रस-रति