Chapter 15 गीतावचनामृतानि
गीतावचनामृतानि
शब्दार्थाः-परम् = सबसे बड़े, वेत्ता = जानकार, वेद्यम् = जानने योग्य, ततम् = फैलाया, ग्लानिः = हानि, अभ्युत्थानम् = बढ़ना, वृधि, आत्मानम् = अपने आपको, सृजामि = पैदा करता हूँ, प्रकट करता है, परित्राणाय = रक्षा करने के लिए, दुष्कृताम् = पापियों के, संस्थापनार्थाय = स्थापना के लिए, सम्भवामि = उत्पन्न होता हूँ, कर्मणि = कर्म में, कदाचन = कभी, सङ्गः = आसक्ति, अकर्मणि = अकर्म में, वासांसि = कपड़े, जीर्णानि = पुराने, विहाय = त्यागकर, छोड़कर, अपराणि = दूसरे, संयाति = जाता है, प्रवेश करता है, देही = आत्मा, (जो शरीर में रहे), एनम् = इसको (आत्मा को), छिन्दन्ति = काटते हैं, शस्त्राणि = हथियार, दहति = जलाता है, आपः = जल, क्लेदयन्ति = गीला । करता है, शोषयति = सुखाता है, युज्यस्व = तैयार हो जाओ, अवाप्स्यसि = पाओगे, प्राप्त करोगे। |
त्वमदिदेवः ……………………………… विश्वमनन्तरूप ॥1॥
हिन्दी अनुवाद-तुम आदिदेव और पुराण पुरुष हो। तुम संसार के परम आधार हो। तुम जानने वाले और ज्ञान के योग्य हो और परमधाम हो। हे अनन्तरूप! तुमसे सारा विश्व व्याप्त है।
यदा यदा हि ………………………………………………… सृजाम्यहम् ॥2॥
हिन्दी अनुवाद-(श्रीकृष्ण भगवान ने कहा) हे अर्जुन! जब-जब धर्म की ग्लानि (हानि) और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं धर्म की स्थापना करने के लिए स्वयं प्रकट होता हूँ।
परित्राणाय ………………………………………….. युगे युगे ॥3॥
हिन्दी अनुवाद-सज्जनों की रक्षा और दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की सम्यक् स्थापना के लिए मैं युग-युग में जन्म लेता हूँ।
कर्मण्येवाधिकारस्ते…………………………………. संगोऽस्वकर्मणि ॥4॥
हिन्दी अनुवाद-(श्रीकृष्ण भगवान ने कहा) तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फलों पर। नहीं है; अतः तुम कर्मों के फल की चिन्ता मत करो और न ही तुम्हारा अकर्म में लगाव हो।
वासांसि ………………………………………………………. नवानि देहि॥5॥
हिन्दी अनुवाद-हे अर्जुन! जिस प्रकार, व्यक्ति पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार, यह आत्मा पुराने शरीर को त्यागकर अन्य नए शरीर को धारण करती है। |
नैनं छिन्दन्ति …………………………………… शोषयति मारुतः ॥6॥
हिन्दी अनुवाद-हे अर्जुन! इस आत्मा को न तो शस्त्र काट सकते हैं, न आग जला सकती है, न जल गीला कर सकता है और न ही वायु सुखा सकती है।
सुखेदुःखे समे ………………………………………. पापमवाप्स्यसि ॥7॥
हिन्दी अनुवाद-हे अर्जुन! सुख-दुख, लाभ-हानि और हार-जीतं को समान मानकर युद्ध के लिए तैयार हो जाओ। इस प्रकार पाप को प्राप्त नहीं होगे अर्थात् पापी नहीं होगे।
अभ्यासः
प्रश्न 1.
उच्चारणं कुरुत पुस्तिकायां च लिखत-
उत्तर
नोट-विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 2.
एकपदेन उत्तरत
(क) पुराणः पुरुषः कः?
उत्तर
श्री कृष्णः |
(ख) अस्माकं कुत्र अधिकारः अस्ति?
उत्तर
कर्मणि।
(ग) केषां परित्राणाय ईश्वरः अस्ति?
उत्तर
साधूनां।
(घ) शस्त्राणि कं न छिन्दन्ति?
उत्तर
आत्मानम्।
प्रश्न 3.
एकवाक्येन उत्तरत
(क) परमात्मा आत्मानं कदा सृजति?
उत्तर
परमात्मा आत्मानं अभ्युत्थानमधर्मस्य सृजति।
(ख) व म् आपः न क्लेदयन्ति?
उत्तर
आत्मानम् आपः ने क्लेदयन्ति।
(ग) जीर्णानि शरीराणि विहाय कः संयाति?
उत्तर
जीर्णानि शरीराणि विहाय आत्मा संयाति।
(घ) पावकः कं न दहति?
उत्तर
पावकः आत्मानं न दहति।
प्रश्न 4.
निम्नाकित-पदेषु सन्धिं कृत्वा तस्य नाम लिखत ( लिखकर )-
सन्धिः नाम
उत्तर
प्रश्न 5.
अधोलिखित-पदेषु शब्दं विभक्तिं वचनं च लिखत (लिखकर)
उत्तर
प्रश्न 6.
अधोलिखित-विशेष्यैः सह विशेषणानि योजयत ( जोड़कर)-
उत्तर
प्रश्न 7
संस्कृतभाषायाम् अनुवादं कुरुत (अनुवाद करके)
(क) जल इसको गीला नहीं करता है।
उत्तर
अनुवाद-आपः एनं न क्लेदयन्ति।।
(ख) धर्म की स्थापना के लिए मैं जन्म लेता हूँ।
उत्तर
अनुवाद-धर्मसंस्थापनार्थाय अहं सम्भवामि।
(ग) सुख-दुख को समान मानकर युद्ध के लिए तैयार हो।
उत्तर
अनुवाद-सुखदु:खे समे कृत्वा युद्धाय युज्यम्व।
• नोट – विद्यार्थी ‘स्मरणीयम और शिक्षण-सङ्रकेत’ स्वयं करें।