Chapter 2 वत्सराजनिग्रहः (कथा – नाटक कौमुदी)
परिचय–महाकवि भास संस्कृत नाट्य-साहित्य में अपना अन्यतम स्थान रखते हैं। स्वयं महाकवि कालिदास ने उनकी प्रशंसा की है। श्री टी० गणपति शास्त्री द्वारा उनका समय ईसा पूर्व चतुर्थ.
शताब्दी निश्चित किया गया है। इनके द्वारा लिखित नाटकों की संख्या ‘तेरहू’ है, जिनमें ‘स्वप्नवासवदत्तम्’, ‘प्रतिमानाटकम्’, ‘प्रतिज्ञायौगन्धरायणम्’ आदि अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। इनकी भाषा प्रभावोत्पादक और मुहावरेदार है तथा शैली अत्यन्त प्रौढ़ है। इनके नाटकों की विशिष्टता यह है कि ये
आज भी सफलता के साथ अभिनीत किये जा सकते हैं। । प्रस्तुत अंश महाकवि भास द्वारा रचित ‘प्रतिज्ञायौगन्धरायणम्’ नाटक के प्रथम अंक से संगृहीत है। इसमें उज्जयिनी के राजा चण्डप्रद्योत द्वारा कृत्रिम नीलहस्ती के व्याज से वत्सराज उदयन को बन्दी बनाने तथा उसके मन्त्री यौगन्धरायण द्वारा अपने स्वामी को छुड़ाने की प्रतिज्ञा करने का वर्णन है।
पाठ-सारांश
यौगन्धरायण की सालक से बातचीत–यौगन्धरायण को यह समाचार मिलता है कि उज्जयिनी का राजा चण्डप्रद्योत कृत्रिम नीलहस्ती (नीला हाथी) बनाकर वत्सराज उदयन के साथ छल करना चाहता है। वत्सराज उदयन अगले दिन ही नागवन को जाने वाले थे, अत: वह पहले ही सालक के साथ स्वामी (उदयन) से मिलना चाहता है। राजमाता यौगन्धरायण और सालक को उदयन के लिए पत्र और रक्षासूत्र देना चाहती हैं। | हंसक द्वारा उदयन के नागवन पहुँचने की सूचना-इसी बीच वत्सराज (उदयन) के पास से हंसक आता है और मन्त्री यौगन्धरायण को सूचना देता है कि स्वामी (उदयन) वत्सराज एक दिन पहले ही बालुका. तीर्थ से नर्मदा को पार करके केवल राजछत्र धारण करके हाथियों का मर्दन करने योग्य थोड़ी-सी सेना लेकर नागवन चले गये हैं। वहाँ कुछ योजन चलकर उन्होंने भयंकर हाथियों के एक झुण्ड को देखा। उस झुण्ड में से कोई पैदल सिपाही स्वामी (उदयन) के सम्मुख आया और उसने बताया कि एक कोस की दूरी पर उसने चमेली और साल के वृक्षों से ढके हुए शरीर वाले, नाखून और दाँतरहित ‘नील कुवलय तनु’ नामक एक नीला हाथी देखा है। उस छली सैनिक को उपहारस्वरूप सौ स्वर्णमुद्राएँ देकर स्वामी ने नील बलाहक हाथी से उतरकर, सुन्दर पाटल घोड़े पर बैठकर केवल बीस पैदल सिपाहियों को साथ लेकर उस ‘नील ‘कुवलय तनु’ नामक हाथी को पकड़ने के लिए प्रस्थान कर दिया। उस छली सैनिक द्वारा बताये गये स्थान पर पहुँचकर स्वामी (उदयन) ने वहाँ साल वृक्षों की छाया में कुछ कम दूरी से उस कृत्रिम नीले हाथी को देखा। स्वामी (उदयन) ने घोड़े से उतरकर जैसे ही वीणा हाथ में ली वैसे ही एक महान् बलशाली सिंह पीछे से प्रकट हुआ।
वत्सराज उदयन का बन्दी बनाया जाना—उसी समय बहुत अधिक सेना के साथ वह मिथ्या हाथी प्रकट हुआ। तब वत्सराज उदयन ने उससे युद्ध करना आरम्भ किया। लगातार युद्ध करने से थककर, प्रहारों से घायल होकर, घोड़े के गिर जाने पर वत्सराज उदयन भी बेहोश हो गये। तब कठोर लताओं से बाँधकर बेहोश उदयन को कठोर यन्त्रणाएँ दी गयीं। उदयन के होश में आने पर वे प्रतिपक्षी तो भाग गये, लेकिन उनमें से एक वत्सराज का वध करने की इच्छा से तलवार लेकर दौड़ा, लेकिन रक्तरंजित धरती पर वह दुष्ट स्वयं फिसल कर गिर पड़ा।
शालंकायन द्वारा उदयन की रक्षा-उसी समय ‘दुस्साहस मत करो’ कहता हुआ प्रद्योत का मन्त्री शालंकायन उस स्थान पर आया और उसने प्रणाम करके स्वामी को बन्धन से मुक्त कर दिया। तब वह सज्जन उपचारसहित शान्ति वचन कहकर स्वामी को पालकी में बैठाकर उज्जयिनी की ओर ले गया। इसी बीच रक्षासूत्र लेकर आयी हुई विजया से यौगन्धरायण ने पूज्या माताजी को स्वामी के पकड़ लिये जाने की बात न बताने के लिए कहा।
यौगन्धरायण द्वारा प्रतिज्ञा-हंसक ने यौगन्धरायण को बताया कि मुझे स्वामी (उदयन) ने सन्देश देने के लिए आपके (यौगन्धरायण के) पास भेजा है। तब यौगन्धरायण मोचयामि न राजानम्, नास्मि यौगन्धरायणः’ (अर्थात् यदि मैं राजा को नहीं छुड़ाता हूँ, तो मैं यौगन्धरायण नहीं हूँ) कहकर राजा को शत्रु से मुक्त कराने की कठिन प्रतिज्ञा करता है।
चरित्र – चित्रण
वत्सराज उदयन
परिचय–प्रस्तुत पाठ में वत्सराज उदयन प्रत्यक्ष रूप से मंच पर नहीं आते। पात्रों के वार्तालाप से ही उनके विषय में कुछ परिचय मिलता है। उदयन कौशाम्बी के राजा और नाटक के नायक हैं। उन्हें ।
‘वत्सराज’ के विशेषण से सम्बोधित किया जाता है। वह एक निश्चिन्त प्रकृति के और मृगया-प्रेमी शासक हैं। उज्जयिनी का राजा चण्डप्रद्योत उन्हें छलपूर्वक बन्दी बना लेता है। उदयन को मुक्त कराने के लिए ही उनका मन्त्री यौगन्धरायण प्रतिज्ञा करता है। उदयन की प्रमुख चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं|
(1) कला मर्मज्ञ-वत्सराज उदयन कला-प्रेमी शासक हैं। संगीत के वे महान् ज्ञाता हैं। वीण बजाने में तो वे इतने निपुण हैं कि क्रुर हाथियों को भी अपनी वीणा के मधुर स्वरों से मदमस्त कर उन्हें अपने वश में कर लेते हैं। उनका वीणावादन द्वारा हाथियों को पकड़ने का कौशल ही उनको बन्दी बनाये जाने का कारण बनता है। वह समय-समय पर कला-गोष्ठियों और प्रदर्शनियों का आयोजन का कलाकारों का सम्मान करते हैं। वह स्वयं अपनी महारानी वासवदत्ता को वीणावादन की शिक्षा देते हैं। प्रत्येक कलाविद् की भाँति वह स्वभाव से रसिक और कोमल है।
(2) मृगया-प्रेमी-वत्सराज उदयन की मृगया (शिकार खेलने) में विशेष रुचि है। उनके मृगया-प्रेम से उनके मन्त्री इत्यादि सभी राज-पुरुष चिन्तित रहते हैं। उनकी मृगया में रुचि कम करने के लिए ही एक बार उनका प्रधानमन्त्री यौगन्धरायण मृगया के समय उनकी प्राणप्रिय रानी वासवदत्ता को छिपा देता है, जिसके वियोग में उदयन अत्यन्त दु:खी होते हैं। मृगया में वे निपुण भी हैं, तभी तो नील-कुवलय हाथी को पकड़ने के लिए बहुत थोड़ी-सी सेना लेकर प्रस्थान करते हैं। नील कुवलय हाथी को देखकर वे स्वयं हाथ में वीणा लेकर अकेले उसे पकड़ने का प्रयत्न करते हैं।
(3) विलासी एवं कर्तव्यपराङ्मुख-कला-प्रेमी उदयन स्वभावोचित विलासी राजा हैं। प्रजा के सुख-दुःख से उन्हें कोई लेना-देना नहीं है। वे प्रतिपल वासवदत्ता के प्रेम में आकण्ठ निमग्न रहते हैं। अथवा वीणावादन में संलग्न रहते हैं। उनके शासन का सम्पूर्ण कार्यभार प्रधानमन्त्री यौगन्धरायण के ऊपर है।
(4) धीरललित नायक-नाट्यशास्त्रियों ने नायकों के मुख्य रूप से चार भेद बताये हैंधीरोदात्त, धीरोद्धत, धीरललित एवं धीरप्रशान्त। उदयन धीरललित कोटि के नायक हैं। इस प्रकार के नायक की विशेषता यह होती है कि वह प्रजा के प्रति अपने कर्तव्यों का ठीक से पालन नहीं करता है। और करता भी है तो अत्यल्प मात्रा में। वत्सराज उदयन की भी यही दशा है।
(5) वीर एवं साहसी-वीर एवं साहसी एक राजा के मुख्य गुण हैं। उदयन इन गुणों से सम्पन्न राजा है। युद्ध अथवा शिकार के लिए वे अधिक सेना को आवश्यक नहीं मानते। नील कुवलय हाथी को पकड़ने के लिए वे वीरता का परिचय देते हुए अकेले ही आगे बढ़ते हैं। चण्डप्रद्योत की सेना से वे साहस के साथ लड़ते हुए घायल होकर गिर पड़ते हैं। उन्हें होश में आती देखकर उनके शत्रु उन्हें छोड़कर भाग खड़े होते हैं; यह तथ्य उनके वीर एवं साहसी होने की पुष्टि करता है।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि वत्सराज उदयन कोमल एवं निश्चिन्त प्रकृति के, श्रृंगारी, रसिक, कला-प्रेमी, सुन्दर एवं युवा शासक हैं।
यौगन्धरायण
परिचय-प्रस्तुत नाट्यांश में यौगन्धरायण ही प्रभावशाली पात्र के रूप में मंच पर अवतरित होता है। वह नृत्सराज उदयन का स्वामिभक्त एवं नीति-निपुण प्रधानमन्त्री है। उसके नाम पर ही नाटक का नाम ‘प्रतिज्ञायौगन्धरायणम्’ रखा गया है। उसका चरित्रांकन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है ।
(1) राजनीति-निपुणे मन्त्री–यौगन्धरायण राऊँनीति में निपुण योग्य मन्त्री है। वह प्रत्येक कार्य को योजनाबद्ध रूप से सम्पन्न करता है। उसके राजनीतिक ज्ञान से प्रभावित होकर ही उदयन ने उसे अपना प्रधान अमात्य नियुक्त किया है और वही शासन का सम्पूर्ण कार्य भी देखता है। उदयन को बन्दी बनाये जाने की सूचना राजमाता को न देने के लिए विजया को आदेश देना उसकी नीति-निपुणता का परिचायक है।
(2) स्वामिभक्त कुशल मन्त्री-कुशल मन्त्री के लिए राजा का विश्वासपात्र एवं स्वामिभक्त होना अनिवार्य है। यौगन्धरायण में ये दोनों गुण विद्यमान हैं। उदयन उसे अपने राज्य का समस्त कार्य देखने का उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य सौंपता है, जिसे वह पूर्ण निष्ठा के साथ सम्पन्न करता है। उसका यह गुण उसके कुशल मन्त्री होने का द्योतक है। स्वामिभक्ति तो उसके रक्त की एक-एक बूंद में समायी।हुई है। उदयन के बन्दी बनाये जाने का समाचार सुनकर वह तुरन्त अपने स्वामी को मुक्त कराने की .: प्रतिज्ञा करता है
यदि शत्रुबलग्रस्तो राहुणा चन्द्रमा इव ।
मोचयामि न राजानं नास्ति यौगन्धरायणः ॥
(3) दूरदर्शी-मन्त्रियोचित गुणों से सम्पन्न यौगन्धरायण दूरदर्शी मन्त्री है। वह चन्द्रप्रद्योत के छल की बात जानकर सालक के साथ उदयन के नागवन जाने से पूर्व मिलना चाहता है और उन्हें सम्भावित विपत्ति से अवगत कराना चाहता है। उसकी आशंका अन्ततः सही निकलती है। उदयन के बन्दी बनाये जाने की सूचना राजमाता को न देने के लिए विजया से कहना भी उसके दूरदर्शी होने का द्योतक है।
(4) कर्तव्यपरायण-जो व्यक्ति स्वयं कर्तव्यपरायण हो, वह दूसरों को भी उसी रूप में देखना चाहता है। यौगन्धरायण स्वयं कर्तव्यपरायण मन्त्री है तभी तो वह हंसक से उदयन को बन्दी बनाये जाने की सूचना पाकर उत्तेजित स्वर में पूछता है कि “रुमण्वान् उस समय कहाँ था? उसके होते हुए यह विपत्ति कैसे आयी?” उसे आशंका होती है कि कहीं रुमण्वान् के कर्तव्यच्युत् होने के कारण ही तो राजा (उदयन) बन्दी नहीं बनाये गये हैं। इसलिए वह उत्तेजित हो जाता है।
(5) वीर-यौगन्धरायण महान् वीर भी है। अपने स्वामी उदयन को बन्दी बनाये जाने की सूचना पाकर वह तनिक भी विचलित नहीं होता, अपितु वीरता के साथ आयी हुई विपत्ति के निवारण का उपाय सोचता है और अन्ततः अपने स्वामी को मुक्त कराने की प्रतिज्ञा करता है। यह घटना उसके वीर पुरुष होने का साक्ष्य प्रस्तुत करती है। | निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि यौगन्धरायण, राष्ट्रप्रेमी, प्रजावत्सल, कर्तव्यपरायण, वीर, साहसी, कुशल राजनीतिज्ञ, दूरदर्शी और विशिष्ट गुणों से युक्त व्यक्ति है।
हंसक
परिचय-प्रस्तुत नाट्यांश में यौगन्धरायण के पश्चात् हंसक ही प्रमुख पात्र है। निर्मुण्डक के साथ मंच पर प्रवेश करने के पश्चात् वह अन्त तक मंच पर बना रहता है और यौगन्धरायण को वस्तुस्थिति से अवगत कराने के साथ-साथ आगामी योजना में भी वह उसका सहायक बनता है। उसकी प्रमुख चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(1) श्रेष्ठ सन्देशवाहक-हंसक एक श्रेष्ठ सन्देशवाहक है। वह यौगन्धरायण को अपने स्वामी (उदयन) को बन्दी बनाये जाने की सूचना देता है और सम्पूर्ण वृत्तान्त को क्रमशः कह देता है। एक-एक घटना का वर्णन वह विस्तार के साथ करता है। उसकी संवाद-प्रेषण की कुशलता को जानकर ही सम्भवत: उदयन उसे ही अपना सन्देश यौगन्धरायण तक पहुँचाने के लिए चुनते हैं। |
(2) स्वामिभक्त–यौगन्धरायण की भाँति हंसक भी स्वामिभक्त है। उदयन को बन्दी बनाये जाने से वह दु:खी है। अपने स्वामी को बन्दी बनाये जाने की पीड़ा उसके इन शब्दों में स्पष्ट रूप से झलकती। है-
‘अस्यानर्थस्योत्पादकः कश्चिन्पदातिः भत्तरमुपस्थितः।”••••••••• ततः सुवर्णशत प्रदानेन तं नृशंसं प्रतिपूज्य भक्तम्’ इत्यादि संवादों से शत्रु के प्रति उसकी ग्लानि एवं स्वामी के प्रति स्वामिभक्ति प्रकट होती है।
(3) विश्वासपात्र –सेवक का मुख्य गुण स्वामी का विश्वासपात्र होना है। हंसक अपने स्वामी का विश्वासपात्र सच्चा सेवक है तभी तो उदयन अपने बन्दी बनाये जाने का समाचार यौगन्धरायण को देने के लिए उसे नियुक्त करते हैं। यौगन्धरायण भी उससे मन्त्रणा करता है। निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि हंसक वाक्पटु, श्रेष्ठ सन्देशवाहक, स्वामिभक्त व सच्चा सेवक है। सेवक है।
शालकायन
प्रस्तुत पाठ में शालंकायन भी मंच पर नहीं आता है। वह राजा चण्ड प्रद्योत का मन्त्री है। वह साहसी, बुद्धिमान्, शिष्ट और सज्जन है। वह युद्ध-स्थल में जाकर राजा उदयन को प्रणाम करता है, शान्त वचनों से उन्हें धैर्य बँधाता है और बन्धन से मुक्त कर देता है। वह अपने स्वामी के शत्रु के प्रति भी शिष्टाचार का व्यवहार करता है तथा सैनिक को उदयन का वध करने से रोककर अपने दयावान होने का परिचय भी देता है।
लघु-उत्तीय संस्कृत प्रश्नोत्तर
अधोलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत में लिखिएप्रश्न
प्रश्न 1
यौगन्धरायणः कः आसीत्?
उत्तर
यौगन्धरायणः वत्सराजस्य उदयनस्य अमात्यः आसीत्।
प्रश्न 2
प्रतिसरा किमर्थं युज्यते?
उत्तर
प्रतिसरा रक्षार्थं युज्यते।
प्रश्न 3
राजा उदयनः नीलहस्तिनं वशीकर्तुं कुत्रं गतः? तत्र किं दृष्टम्?
उत्तर
राजा उदयनः नीलहस्तिनं वशीकर्तुं नागवनं गतः। तत्र सः गजबूंथम् एकं पदाति च अपश्यत्।।
प्रश्न 4
तेन का नदी तीर्णा?
उत्तर
तेन नर्मदा नदी तीर्णा।
प्रश्न 5
कतिभिः पदातिभिः सह राजा प्रयातः?
उत्तर
राजा विंशत्या पदातिभिः सह प्रयातः
प्रश्न 6
‘कृतकहस्ती’ इति तेन कथं ज्ञातम्?
उत्तर
यदा स हस्ती सैन्येन सह प्रकटितः तदा राज्ञा सः कृतकहस्ती इति ज्ञातः
प्रश्न 7
कथं मोहं गतो राजा? ।
उत्तर
अनुबद्धदिवसयुद्धपरिश्रान्तः बहुप्रहारनिपतिततुरगः स राजा मोहं गतः
प्रश्न 8
केन विमुक्तेः राजा?
उत्तर
प्रद्योतस्य अमात्येन शालङ्कायनेन विमुक्तः राजा उदयनः।
प्रश्न 9
यौगन्धरायणेन का प्रतिज्ञा कृता?
उत्तर
“यदि शत्रुबलग्रस्तं राजानं न मोचयामि, नाहमस्मि यौगन्धरायणः”, इति यौगन्ध- रायणेन प्रतिज्ञा कृता।।
प्रश्न 10
राजा कुत्रानीतः?
उत्तर
राजा उज्जयिनीम् आनीतः।।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
अधोलिखित प्रश्नों में से प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए-
1. ‘वत्सराजनिग्रहः’ नामक पाठ महाकवि भास के किस नाटक से संगृहीत है?
(क) प्रतिमानाटकम्
(ख) स्वप्नवासवदत्तम् ।
(ग) दूतवाक्यम् ।
(घ) प्रतिज्ञायौगन्धरायणम् ।
2. ‘प्रतिज्ञायौगन्धरायणम्’ नाटक के नाटककार हैं–
(क) महाकवि भवभूति
(ख) महाकवि शुद्रक
(ग) महाकवि कालिदास
(घ) महाकवि भास
3. निम्नलिखित में से कौन-सी रचना महाकवि भास द्वारा लिखी हुई नहीं है ?
(क) स्वप्नवासवदत्तम् ।
(ख) प्रतिज्ञायौगन्धरायणम् ।
(ग) उत्तररामचरितम्
(घ) प्रतिमानाटकम्
4. ‘वत्सराजनिग्रहः’ नाट्य-रचना में ‘वत्सराज’ कौन है?
(क) कौशाम्बी का राजा
(ख) कौशाम्बी का मन्त्री
(ग) उज्जयिनी का राजा
(घ) उज्जयिनी का मन्त्री
5. वत्सराज किस विद्या में निपुण थे?
(क) अश्वविद्या में
(ख) शासन-संचालन में
(ग) शस्त्रविद्या में
(घ) वीणावादन में …
6. उदयन नर्मदा नदी को पार करके कहाँ गये थे?
(क) कौशाम्बी
(ख) बालुका तीर्थ :
(ग) उज्जयिनी ।
(घ) नागवन
7. उदयन कहाँ का राजा था?
(क) उज्जयिनी का
(ख) कौशाम्बी का
(ग) काशी का
(घ) मगध का
8. उदयन अश्व पर चढ़कर कितने सैनिकों के साथ हाथी को पकड़ने के लिए गया?
(क) बीस
(ख) तीस
(ग) चालीस
(घ) पचास
9. चण्डप्रद्योत ने उदयन के साथ किसके द्वारा छल किया?
(क) वीणा के द्वारा
(ख) पाटल घोड़े के द्वारा
(ग) नील कुवलय हाथी के द्वारा।
(घ) नीलबलाहक हाथी के द्वारा
10. यौगन्धरायण किसका मन्त्री है?
(क) चण्डप्रद्योत का
(ख) शालंकायन का
(ग) हंसक का
(घ) उदयन का
11. यौगन्धरायण में कौन है? नहीं था?
(क) राजभक्ति
(ख) प्रजामंगल और स्वामिभक्ति
(ग) मृगयाप्रेम।
(घ) कूटनीतिज्ञ
12. उदयन के बन्दी होने की सूचना यौगन्धरायण को कौन देता है?
(क) सालक
(ख) हंसक
(ग) शालंकायन
(घ) विजया
13. यौगन्धरायण ने विजया को उदयन के बन्दी होने का समाचार उनकी माता को देने से क्यों मना कर दिया?
(क) क्योंकि उदयन की ऐसी ही आज्ञा थी। |
(ख) क्योंकि राजनीतिक दृष्टि से यह उचित नहीं था।
(ग) क्योंकि उदयन की माता दुर्बल हृदय की थीं।
(घ) क्योंकि मन्त्री यौगन्धरायण राजमाता से रुष्ट थे
14. ‘नागयूथम्’ शब्द का क्या अभिप्राय है?
(क) हाथियों का झुण्ड
(ख) घोड़ों का झुण्ड |
(ग) नागों का झुण्ड
(घ) सिंहों का झुण्ड
15.’••••••••••नाम प्रद्योतस्य अमात्यः।’ में वाक्य-पूर्ति होगी
(क) यौगन्धरायणो
(ख) सालको
(ग) हंसको
(घ) शालङ्कायनो
16. ‘इदानीं रुमण्वान् क्व गतः? इदानीम् अश्वारोहणीयं क्व गतम्?’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति ?
(क) यौगन्धरायणः
(ख) शालङ्कायनः
(ग) उदयनः
(घ) हंसक
17.’अस्त्येष चक्रवर्ती …………….. नीलकुवलयतनुर्नाम हस्तिशिक्षायां पठितः।’ वाक्य में रिक्त स्थान में आएगा
(क) ऊष्ट्रः
(ख) अश्वः
(ग) राजा
(घ) हस्ती
18. ‘अहो नु खलु वत्सराजभीरुत्वं प्रद्योयतस्य।’ वाक्यस्य वक्ता कः अस्ति?
(कु) सालकः :
(ख) प्रद्योतः
(ग) यौगन्धरायणः
(घ) हंसकः
19. ‘यदि शत्रुबलग्रस्तो राहुणा चन्द्रमा इव।’ वाक्यस्य वक्ताकः अस्ति?
(क) यौगन्धरायणः
(ख) उदयन:
(ग) शालङ्कायनः
(घ) चण्डप्रद्योतः