Chapter 2 संत रैदास
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. निम्नलिखित पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या कीजिए तथा काव्यगत सौन्दर्य भी स्पष्ट कीजिए :
रैदास की भाषा शैली 1.
प्रभुजी तुम चन्दन….…………………………………..चन्द चकोरा।
शब्दार्थ-प्रभुजी = ईश्वर । बास = महक, समानी = समाया हुआ है। घन = बादल, मोरा = मयूर, चकोर = चातक, पपीहा, चितवत = देखता है।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य पंक्तियाँ सन्त रैदास द्वारा रचित हैं। प्रसंग-प्रस्तुत पद में कवि की अनन्य भक्ति प्रदर्शित हुई है।
व्याख्या- सन्त रैदास जी कहते हैं कि मेरे मन में राम नाम की जो रट लगी है, अब वह नहीं छूट सकती है। हे प्रभुजी ! आप चन्दन हैं और मैं पानी, जिसकी सुगन्ध मेरे अंग-अंग में समा गयी है। हे प्रभु! आप इस उपवन के वैभव हैं और मैं मोर । मेरी दृष्टि आपके ऊपर लगी हुई है जैसे चकोर चन्द्रमा की तरफ देखता रहता है। उसी प्रकार मेरा मन भी सदैव आपके ऊपर लगा रहता है। आपसे पृथक् रहकर मेरा कोई अस्तित्व नहीं है।
2.
प्रभुजी तुम दीपक……………………………………… मिलत सोहागा।
शब्दार्थ-दीपक = दीया, जोति = प्रकाश, बरै = जले, सोनहिं = सोना।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य पंक्तियाँ सन्त रैदास द्वारा रचित हैं।
प्रसंग- इन पंक्तियों में सन्त रैदास की ईश्वर के प्रति अनन्य भक्ति का वर्णन है।
व्याख्या- रैदास जी कहते हैं कि हे ईश्वर ! आप दीपक हैं और मैं उस दीप की प्राता हूँ जिसकी ज्योति दिन रात निरन्तर जलती रहती है । हे ईश्वर! आप मोती हैं और मैं उस मोती में पिरोया जाने वाली धागा हूँ। यह स्थिति उसी प्रकार है जैसे सोने और सुहागा के मिलने पर होता है। हे ईश्वर ! मैं सदैव आपके निकट ही रहना चाहता हूँ।
रैदास के पद की व्याख्या 3.
प्रभुजी तुम स्वामी………………………………………करै रैदासा।
शब्दार्थ-स्वामी = मालिक, दासा = दास, नौकर, सेवक।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पद्य पंक्तियाँ सन्त रैदास द्वारा रचित हैं।
प्रसंग- इन पंक्तियों में रैदास जी ने अपने को ईश्वर के दास के रूप में प्रदर्शित किया है।
व्याख्या- रैदास जी कहते हैं कि हे प्रभुजी ! आप स्वामी हैं और मैं आपका दास हूँ। रैदास के मन में ईश्वर के प्रति इसी तरह का भक्ति भाव है। रैदास जी अपने को ईश्वर का दास समझ बैठे हैं। ईश्वर के प्रति उनकी अनन्य भक्ति है। ईश्वर के प्रति इस प्रकार की भक्ति रखने वाले लोग इस संसार के माया-मोह से मुक्त हो जाते हैं।
प्रश्न 2. रैदास का जीवन परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा रैदास की साहित्यिक सेवाओं एवं भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
(स्मरणीय तथ्य)
जन्म- 14वीं शताब्दी के मध्य से 15वीं शताब्दी को उत्तरार्द्ध।
मृत्यु- संवत् 1597
माता का नाम- भगवती
पिता का नाम- मानदास ।
कृतियाँ- रैदास की वाणी
जीवन-परिचय- भक्ति कालीन कवियों में सन्त रैदास का महत्त्वपूर्ण स्थान है, किन्तु सटीक साक्ष्यों के अभाव में आज भी इनका जीवन अन्धकारपूर्ण है।
रैदास की अनेक कृतियों में उनके अनेक नाम देखने को मिलते हैं। देश के विभिन्न भागों में उनके ऐसे अनेक नाम प्रचलित हैं जिनमें उच्चारण की दृष्टि से बहुत थोड़ा अन्तर है। रैदास (पंजाब), रविदास (आधुनिक), रयदास, रदास (बीकानेर की प्रतियों में), रयिदास आदि नाम इस उच्चारण की भिन्नता को ही प्रकट करते हैं। इसलिए लोक प्रचलन और सुविधा की दृष्टि से उनका मूल नाम रैदास ही स्वीकार किया जाता है। भक्तमाल में कहा गया है कि रैदास रामानन्द के शिष्य थे। स्वत: रैदास की वाणी में भी ऐसे उद्धरण उपलब्ध हैं, जहाँ उन्होंने स्वामी रामानन्द को अपना गुरु स्वीकार किया है
रामानन्द मोहि गुरु मिल्यो, पायो ब्रह्मविसास।
रस नाम अमीरस पिऔ, रैदास ही भयौ पलास ॥
रामानन्द का समय 14वीं शताब्दी के मध्य से 15वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक माना जाता है किन्तु इसकी विरोधी धारणा यह भी प्रचलित है कि रैदास मीरा के गुरु थे। मीरा का समय 16वीं शताब्दी के मध्य से 17वीं शताब्दी के आरम्भ तक माना गया है। प्रायः सभी विद्वानों की धारणा है कि रैदास कबीर (जन्म संवत् 1455) के समकालीन थे।
रैदास के माता-पिता के बारे में प्रामाणिक रूप से कुछ कहना कठिन जान पड़ता है। जनश्रुतियों तथा साम्प्रदायिक सूचनाओं के आधार पर कुछ निष्कर्ष निकाले गये हैं। भविष्यपुराण में रैदास के पिता का नाम मानदास बताया गया है। रैदास-पुराण में रैदास की माता का नाम ‘भगवती’ दिया गया है।
- रैदास का निर्वाण (तिथि तथा स्थल)- रैदास के निर्वाण की तिथि तथा स्थल के विषय में कोई प्रामाणिक सूचना नहीं मिलती। चित्तौड़ के रविदासी भक्तों का कथन है कि चित्तौड़ में कुम्भनश्याम के मन्दिर के निकट जो रविदास की छतरी बनी हुई है, वही उनके निर्वाण का स्थल है। उस छतरी में रैदास जी के निर्वाण की स्मृतिस्वरूप रैदास जी के चरण-चिह्न भी बने हुए हैं।
रैदास-रामायण के रचयिता ने लिखा है कि रैदास गंगा तट पर तपस्या करते हुए जीवन-मुक्त हुए। दोनों ही विचारधारा वाले लोग रैदास का ‘सदेह गुप्त’ होना मानते हैं। श्रद्धालु भक्त महापुरुषों का ‘सदेह गुप्त’ होना ही मान सकते हैं किन्तु इस सदेह गुप्त होने से एक संशय उत्पन्न होता है। वस्तुत: रैदास के निर्वाण को किसी ने देखा नहीं और इसीलिए उनकी मृत्यु को श्रद्धापूर्वक सन्देह गुप्त’ अथवा ‘सदेह गुप्त’ कह दिया गया। वस्तुत: रैदास जी अचानक किसी स्थल पर अनायास स्वर्गवासी हो गये होंगे और भक्तों को ज्ञात नहीं हो सका होगा इसीलिए उनके विषय में श्रद्धापूर्वक सदेह गुप्त होने की बात चल पड़ी। रैदास के मृत्यु-स्थल का किसी को भी पता नहीं है।
जहाँ तक रैदास की निर्वाण-तिथि का प्रश्न है, रविदासी सम्प्रदाय तथा भक्तों में रैदास की निर्वाण-तिथि चैत बदी चतुर्दशी मानी जाती है। किसी अन्य प्रमाण के अभाव में हम भी इसी तिथि को रैदास की निर्वाण-तिथि मान सकते हैं। जहाँ तक रैदास के निर्वाण के वर्ष का प्रश्न है, कुछ विद्वानों ने रैदास का मृत्यु-वर्ष संवत् 1597 माना है।’मीरा-स्मृति-ग्रंथ’ में उनका मृत्यु-वर्ष संवत् 1576 माना गया है।
रैदास की जन्मतिथि को देखते हुए इनमें से कोई भी वर्ष असंगत ज्ञात नहीं होता। हाँ, यह बात अवश्य है। कि रैदास के निर्वाण के सम्बन्ध में इन वर्षों को मानने वाले श्रद्धालु भक्तों ने उनकी आयु 130 वर्ष तक मानकर उनको कबीर से भी ज्येष्ठ सिद्ध करने की चेष्टा अवश्य की है। - कृतियाँ-
- आदि ग्रन्थ में उपलब्ध रैदास की वाणी,
- रैदास की वाणी, वेलवेडियर प्रेस। |
- हिन्दी साहित्य से जुड़े अनेक विद्वानों ने रैदास जी पर आधारित अनेक रचनाएँ की हैं, जो निम्नलिखित हैं-
- सन्त रैदास और उनका काव्य (सम्पादक : रामानन्द शास्त्री तथा वीरेन्द्र पाण्डेय),
- सन्त सुधासार (सम्पादक : वियोगी हरि),
- सन्त-काव्य (परशुराम चतुर्वेदी),
- सन्त रैदास : व्यक्तित्व एवं कृतित्व (संगमलाल पाण्डेय),
- सन्त रैदास (डॉ० जोगिन्दर सिंह),
- रैदास दर्शन (सम्पादक : आचार्य पृथ्वीसिंह आजाद),
- सन्त रविदास (श्री रत्नचन्द),
- सन्त रविदास : विचारक और कवि (डॉ० पद्म गुरुचरण सिंह) और
- सन्त गुरु रविदास वाणी (डॉ० वेणीप्रसाद शर्मा)।
- भाषा-शैली- रैदास की भाषा वस्तुत: तत्कालीन उत्तर भारत की सामान्य जनता के प्रति ग्राह्य भाषा बनकर राष्ट्रीय एकसूत्रता की भाषा बन गयी थी। इनकी भाषा में अवधी एवं ब्रज के शब्दों का सर्वाधिक प्रयोग हुआ है। इनकी शैली भी प्रसाद गुण सम्पन्न और मुख्यतः अभिधात्मक ही रही है। रैदास के काव्य में भावातिरेक की मात्रा अधिक थी। अतः उनकी रचनाओं में उस अतिरेक को प्रकट करने के लिए प्रतीकात्मक लाक्षणिक शैली अनेक स्थलों पर सहायक सिद्ध हुई है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
‘प्रभुजी तुम चन्दन हम पानी’ कविता का केन्द्रीय भाव लिखिए।
उत्तर- हे प्रभुजी ! आप चन्दन हैं और मैं पानी, जिसकी सुगन्ध मेरे अंग-अंग में समा गयी है। हे प्रभुजी ! आप इस उपवन के वैभव हैं और मैं मोर। मेरी दृष्टि आपके ऊपर लगी हुई है जैसे-चकोर चन्द्रमा की तरफ देखता रहता है। हे ईश्वर ! आप दीपक हैं और मैं उस दीप की बाती हूँ जिसकी ज्योति निरन्तर जलती रहती है। हे ईश्वर ! आप मोती हैं और मैं उस मोती में पिरोया जाने वाला धागा हूँ। यह स्थिति उसी प्रकार है जैसे सोने और सुहागा के मिलने पर होता है। हे प्रभुजी ! आप स्वामी हैं और मैं आपका दास हूँ। रैदास के मन में ईश्वर के प्रति इसी तरह का भक्तिभाव है।
प्रश्न 2.
‘प्रभुजी तुम चन्दन हम पानी’ कविता के आधार पर रैदास की भक्ति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- रैदास निर्गुण सन्त थे। उनकी ज्ञान सत्संग एवं लौकिक अनुभव का प्रतिफल था। रैदास एक साधक के रूप में भक्ति भाव के विशेष आग्रही हैं। उनका विश्वास है कि भक्ति से रहित बाहरी आडम्बर निरर्थक है। जो व्यक्ति हृदय से भगवान के प्रति समर्पित नहीं केवल कर्मकाण्ड, तीर्थयात्रा, जप-तप आदि पर ही विश्वास करते हैं, उनकी मुक्ति असम्भव है।
वे मूर्ति पूजा, यज्ञ, पुराण-कथा आदि की भी उपेक्षा करते हैं। उनकी दृष्टि में ईश्वर कर्मा है, सर्वव्यापक है, अन्तर्यामी है तथा भक्ति से प्रसन्न होकर दीन-दलितों का उद्धार करने वाला है। ऐसे ईश्वर को प्राप्त करने के लिए भक्ति को छोड़कर वे अन्य कोई साधने उचित नहीं मानते।
प्रश्न 3.
जाकी ज्योति बरै दिन राती’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- ईश्वर रूपी ज्योति ऐसी है जो निरन्तर जलती रहती है, जो कभी बुझती नहीं है। यह निरन्तर प्रज्ज्वलित रहती है। ईश्वर रूपी ज्योति पूरे संसार को आलोकित करती रहती है।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. रैदास किस काल के कवि थे?
उत्तर- रैदास भक्तिकाल के कवि थे।
प्रश्न 2. रैदास की रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर- रैदास की वाणी।
प्रश्न 3. रैदास के पिता का क्या नाम था?
उत्तर- भविष्य पुराण में रैदास के पिता का नाम मानदास बताया गया है।
प्रश्न 4. रैदास की माता का नाम लिखिए।
उत्तर- रैदास पुराण में रैदास की माता का नाम भगवती दिया गया है।
प्रश्न 5. रैदास किस कवि के समकालीन थे?
उत्तर- रैदास कबीर के समकालीन थे।
काव्य सौन्दर्य एवं व्याकरण बोध
प्रश्न 1. ‘जैसे चितवत चन्द चकोरा’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर- इस पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्न 2. निम्नलिखित के तत्सम रूप लिखिए – राती, सोनहिं, मोती।
उत्तर- रात्रि, सुवर्ण, मुक्ता।
आन्तरिक मूल्यांकन
प्रश्न 1. भक्ति कालीन कवियों को सूचीबद्ध कीजिए।
- कबीर
- मलिक मोहम्मद जायसी
- रैदास
- मीरा बाई
- सूरदास
- तुलसीदास