Chapter 20 स्वामी विवेकानन्द
पाठ का सारांश
स्वामी विवेकानन्द का बचपन का नाम नरेन्द्र (नरेन) था। इनका जन्म 12 जनवरी 1863 ई० को कोलकाता में हुआ। इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। अधिक प्यार के कारण नरेन्द्र, हठी बन गया था। जब वह शरारत करता तो माँ शिव, शिव कहकर उसके सिर पर पानी के छींटें देती। इससे ये शान्त हो जाता क्योंकि इनकी शिव में अगाध श्रद्धा थी।
नरेन्द्र की आरम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। कुश्ती, बॉक्सिंग, दौड़, घुड़दौड़ और व्यायाम उनके शौक थे। उनके आकर्षक व्यक्तित्व को लोग देखते ही रह जाते। उन्होंने बी०ए० तक शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने पाश्चात्य और भारतीय संस्कृति का विस्तृत अध्ययन किया। दार्शनिक विचारों के अध्ययन से उनके मन में सत्य को जानने की इच्छा जाग्रत् हुई। सन् 1881 ई० में उन्होंने रामकृष्ण परमहंस से प्रश्न किया, “क्या आपने ईश्वर को देखा है?” उत्तर मिला, “हाँ देखा है, जैसे मैं तुम्हें देख रहा हूँ।” नरेन्द्र मौन हो गए।
उनका संशय दूर हुआ और उनकी आध्यात्मिक शिक्षा शुरू हो गई। स्वामी रामकृष्ण ने भावी युग प्रवर्तक और संदेश वाहक को पहचान कर टिप्पणी की, “नरेन एक दिन संसार को आमूले झकझोर डालेगा।” रामकृष्ण की मृत्यु के पश्चात् नरेन्द्र ने भारत में घूमकर उनके विचारों का प्रचार करना शुरू कर दिया। उन्होंने तीन वर्ष तक पैदल घूमकर सारे भारत का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने अपने जीवन को पहला उद्देश्य धर्म की पुनस्र्थापना निर्धारित किया।
उनका दूसरा कार्य था- हिन्दू धर्म और संस्कृति पर हिन्दुओं की श्रद्धा जमाना और तीसरा कार्य था- भारतीयों को संस्कृति, इतिहास और आध्यात्मिक परम्पराओं का योग्य उत्तराधिकारी बनाना। उन्होंने अपना नाम विवेकानन्द रखा और 1893 ई० के शिकागो धर्म सम्मेलन में भाग लिया। इनकी बोलने की बारी सबसे बाद में आई क्योंकि वहाँ इन्हें कोई नहीं जानता था। इनके सम्बोधन से सभा-भवन तालियों से गूंज उठा और इन्हें सर्वश्रेष्ठ व्याख्याता माना गया। इनके विदेशी मित्रों में मार्गरेट नोब्ल (सिस्टर निवेदिता) और जे जे गुडविन सेवियर दम्पत्ति जैसे प्रसिद्ध विद्वान विशेष प्रभावित हुए।
स्वामी जी तीन वर्ष तक इंग्लैण्ड और अमेरिका में रहे। इन्होंने वहाँ पर संयम और त्याग का महत्त्व समझाया। मानव मात्र के प्रति प्रेम और सहानुभूति उनका स्वभाव था। सेवा के उद्देश्य से उन्होंने 1897 ई० में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। मिशन का लक्ष्य सर्वधर्म समभाव था। कोलकाता में प्लेग फैलने पर इन्होंने प्लेग ग्रस्त लोगों की सेवा की।
स्वामी जी के हृदय में नारियों के प्रति असीम उदारता का भाव था। वे उन्हें महाकाली की साकार प्रतिमाएँ कहकर सम्मान देते थे। 4 जुलाई 1902 ई० को उनतालीस वर्ष की अल्पायु में उनका देहावसान हो गया। संघर्ष, त्याग और तपस्या का प्रतीक यह महापुरुष भारतीयों के हृदयों में चिरस्मरणीय रहेगा।
अभ्यास-प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
प्रश्न 1.
नरेन्द्र का नाम विवेकानन्द कैसे हुआ?
उत्तर :
अपने शिष्य खेतरी नरेश के प्रस्ताव पर उन्होंने अपना नाम विवेकानन्द धारण किया।
प्रश्न 2.
नरेन्द्र के बारे में रामकृष्ण परमहंस ने क्या टिप्पणी की थी?
उत्तर :
नरेन्द्र के बारे में रामकृष्ण परमहंस ने टिप्पणी की थी, “नरेन (नरेन्द्र) एक दिन संसार को आमूल झकझोर डालेगा।”
प्रश्न 3.
स्वामी विवेकानन्द ने जीवन के क्या लक्ष्य निर्धारित किए?
उत्तर :
स्वामी विवेकानन्द के जीवन का पहला लक्ष्य- धर्म की पुनस्र्थापना का लक्ष्य- हिन्दू धर्म और संस्कृति पर हिन्दुओं की श्रद्धा जमाना और तीसरा लक्ष्य था- भारतीयों को उनकी संस्कृति, इतिहास और आध्यात्मिक परम्पराओं का योग्य उत्तराधिकारी बनाना निर्धारित किया।
प्रश्न 4.
स्वामी विवेकानन्द विदेश यात्रा के समय किन-किन लोगों से मिले?
उत्तर :
स्वामी विवेकानन्द विदेश यात्रा के समय मित्र के रूप में जे०जे० गुडविन, सेवियर दम्पति और मर्णरेट नोबल से मिले। सहयोगी के रूप में भगिनी निवेदिता मिली तथा विदेश यात्रा के दौरान ही उनकी भेंट प्रसिद्ध विद्वान मैक्समलर से हुई।
प्रश्न 5.
शिकागो धर्म सभा में स्वामी जी को सबसे बाद में बोलने के लिए आमंत्रित किया गया क्योंकि
(क) वे देर से पहुँचे थे।
(ख) वे पहले बोलने में झिझक रहे थे।
(ग) उन्होंने ही ऐसी इच्छा जताई थी।
(घ) वहाँ न तो कोई उन्हें पहचानता था, न समर्थक था। (✓)
प्रश्न 6.
शिकागो धर्म सम्मेलन में किस बात पर श्रोता देर तक तालियाँ बजाते रहे?
उत्तर :
शिकागो धर्म सम्मेलन में सम्बोधन, “अमेरिकावासी भाइयों और बहिनो” पर श्रोता देर तक तालियाँ बजाते रहे।
प्रश्न 7.
स्वामी विवेकानन्द के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं ने आपको सबसे ज्यादा प्रभावित किया और क्यों? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर :
स्वामी विवेकानन्द के व्यक्तित्व की विशेषताएँ- संघर्ष, त्याग, तपस्या, साधना, दलितों के लिए सेवा और उनका उद्धार, उनकी व्याख्यान क्षमता आदि ने हमें विशेष प्रभावित किया है। हम उनसे इसलिए प्रभावित हैं कि उन्होंने अल्पायु में अनेक कार्य करके यह सिद्ध कर दिया कि जंग लगकर मरने की अपेक्षा कुछ करके मरना अच्छा है।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए
- विग्रह नहीं समन्वय और शान्ति के पथ पर बढ़ो।
आशय स्पष्ट – अलगाव ओर टकराव के स्थान पर मेल-जोल और सद्भावना का पथ श्रेष्ठ है। - मैं भारत में लोहे की माँसपेशियाँ और फौलाद की नाड़ियाँ देखना चाहता हूँ।
आशय स्पष्ट – अच्छा स्वास्थ्य और साहस व दृढ़ निश्चय वाले कर्मठ व्यक्ति। - वास्तविक पूजा निर्धन और दरिद्र की पूजा है, रोगी और कमजोर की पूजा है।
आशय स्पष्ट – गरीब लोगों की सेवा और सहायता करना। - जो जाति नारी का सम्मान करना नहीं जानती, वह न तो अतीत में उन्नति कर सकी, न आगे कर सकेगी।
आशय स्पष्ट – नारियों की अवहेलना करने वाले कभी तरक्की नहीं कर पाए और न कर सकेंगे। - भारत यदि समाज संघर्ष में पड़ा तो नष्ट हो जाएगा।
आशय स्पष्ट – समाज में विखण्डन और भेद-भाव नीति भारत के लिए हानिकारक है। - जंग लगकर मरने की अपेक्षा कुछ करके मरना अच्छा है। उठो, जागो और अपने अन्तिम लक्ष्य की पूर्ति हेतु कर्म में लग जाओ।
आशय स्पष्ट – आलस्य छोड़कर, साहस से पुरुषार्थ करके जीवन में सफलता प्राप्त करना