Chapter 4 ऋतुवर्णनम्

गद्यांशों का सन्दर्भ-सहित हिन्दी अनुवाद

श्लोक 1
मत्ता गजेन्द्रा मुदिता गवेन्द्राः वनेषु विक्रान्ततरा मृगेन्द्राः।
रम्या नगेन्द्रा निभृता नरेन्द्राः प्रक्रीडितो वारिधरैः सुरेन्द्रः।। (2018, 10)
सन्दर्भ प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘ऋतुवर्णनम्’ नामक पाठ के ‘वर्षा’ खण्ड़ से उद्धृत हैं।
अनुवाद हाथी मस्त हो रहे हैं, साँड प्रसन्न हो रहे हैं, वनों में सिंह अधिक पराक्रमी हो रहे हैं, पर्वत मनोहर लग रहे हैं, राजागण शान्त (उद्यम से मुक्त) हो रहे हैं और इन्द्र मेघों से खेल रहे हैं।

श्लोक 2
एते हि समुपासीना विहगा जुलैचारिणः।
नावगाहन्ति सलिलमप्रगल्भा इवावम्।।
अवश्यायमोनद्धा नीहारतमसावृताः।
प्रसुप्ता इव लक्ष्यन्ते विपुष्पा बुनराजयः।। (2011)
सन्दर्भ प्रस्तुत श्लोक, हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘ऋतुवर्णनम्’ नामक पाठ के “हेमन्तः” खण्ड़ से, उद्धृत है।
अनुवाद जल के समीप बैठे जल में रहने वाले ये पक्षी जल में उसी प्रकार प्रवेश नहीं कर रहे हैं, जिस प्रकार कायर (व्यक्ति) रणभूमि में प्रवेश नहीं करते। ओस तथा अन्धकार में थे, कुहरे की धुन्ध से ढके हुए पुष्प-विहीन वृक्षों की पत्तियाँ सोई हुई सी प्रतीत हो रही हैं।

श्लोक 3
खजूरपुष्पाकृतिभिः शिरोभिः पूर्णतण्डुलैः।
शोभन्ते किञ्चिदालम्बाः शालय: कनकप्रभाः।। (2017)
सन्दर्भ पूर्ववत्।
अनुवाद खजूर के फूल के समान आकृति वाले, चावलों से पूर्ण बालों से कुछ झुके हुए, सोने के समान चमक चाले धान शोभित हो रहे हैं।

श्लोक 4
सुखानिलोऽयं सौमित्रे कालः प्रचुरमन्मथः।।
गन्धवान् सुरभिर्मासो जातपुष्पफलद्रुमः।। (2013)
सन्दर्भ प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘ऋतुवर्णनम्’ नामक पाठ के ‘वसन्तः’ खण्ड़ से उद्धृत है। ‘
अनुवाद हे लक्ष्मण! सुखद समीर वाला यह समय अति कामोद्दीपक हैं। सौरभयुक्त इस वसन्त माह में वृक्ष फूल और फलों से युक्त हो रहे हैं।

श्लोक 5
पश्य रूपाणि सौमित्रे वनानां पुष्पशालिनाम्।
सृजतां पुष्पवर्षाणि वर्ष तोयमुचामिव।। (2016, 14, 12)
सन्दर्भ पूर्ववत्।।
अनुवाद हे लक्ष्मण! जिस प्रकार बादल वर्षा की सृष्टि करते हैं, उसी प्रकार फूल बरसाते हुए फलों से शोभायमान वनों के विविध रूपों को देखो।

श्लोक 6
प्रस्तरेषु च रम्येषु विविधा काननद्रुमाः।
वायुवेगप्रचलिताः पुष्पैरवकिरन्ति गाम्।। (2018, 15, 14, 12)
सन्दर्भ पूर्ववत्।।
अनुवाद वायु-वेग से हिलने के कारण अनेक प्रकार के जंगली वृक्ष सुन्दर पत्थरों एवं धरा पर पुष्प बिखेर रहे हैं।

श्लोक 7
अमी पवनविक्षिप्ता विनदन्तीव पादपाः।।
षट्पदैरनुकूजभिः वनेषु मदगन्धिषु ।। (2016)
सन्दर्भ पूर्ववत्।।
अनुवाद हवा के द्वारा हिलाए गए ये वृक्ष मोहक सुगन्ध वाले वनों में गूंजते हुए, भौरों से बोल रहे हैं।

प्रश्न – उत्तर

प्रश्न-पत्र में संस्कृत दिग्दर्शिका के पाठों (गद्य व पद्य) में से चार अतिलघु उत्तरीय प्रश्न दिए जाएंगे, जिनमें से किन्हीं दो के उत्तर संस्कृत में लिखने होंगे, प्रत्येक प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित है।

प्रश्न 1.
वर्षर्ती गगनं कीदृशं भवति? (2010)
उत्तर:
वर्षत गगनं घनोपगूढम् अन्धकारपूर्णं च भवति।

प्रश्न 2.
वर्षाकाले पर्वतशिखराणि कैः तुलितानि? (2013)
उत्तर:
वर्षाकाले पर्वतशिखराणि मुक्ताकलापैर्भूषिता सह तुलितानि।

प्रश्न 3.
कः कालः प्रचुरमन्मथः भवति? (2017, 12)
उत्तर:
वसन्तः कालः प्रचुरमन्मथः भवति।

प्रश्न 4.
वसन्तकाले वृक्षाः कीदृशाः भवन्ति? (2017, 13, 11)
उत्तर:
वसन्तकाले वृक्षा: पुष्पयुक्ताः फलयुक्ताः च भवन्ति।

प्रश्न 5.
काननद्रुमाः गां पुष्पैः कदा अवकिरन्ति? (2014)
उत्तर:
काननद्रुमाः गां पुष्पैः वसन्ते अवकिरन्ति।

प्रश्न 6.
वसन्तत पुष्पिताः कर्णिकाराः कीदृशाः प्रतीयन्ते? (2018)
उत्तर:
वसन्ततौ पुष्पिता: कर्णिकारा: स्वर्णयुक्ता पीताम्बरा नरा इव प्रतीयन्ते।

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