Chapter 5 कर्मनाशा की हार
कर्मनाशा की हार – पाठ का सारांश/कथावस्तु
(2018, 16, 14, 12)
भैरो पाण्डे एवं उनका भाई कुलदीप
कर्मनाशा नदी के किनारे नई डीह नामक एक गाँव है, जिसमें पैरों से अपाहिज मैरो पाण्डे नामक एक पण्डित रहता है। उनका छोटा भाई कुलदीप जब दो वर्ष का था, भी उन दोनों के माता पिता की मृत्यु हो गई। मैरों पाण्डे ने ही छोटे भाई कुलदीप का पालन-पोषण अपने पुत्र की तरह किया। कुलदीप अब 16 वर्ष का युवक हो गया है। भैरो पाण्डे का अपना पुश्तैनी मकान, जिसमें से हुए मैरों पाण्डे सूत कातकर जनेऊ धनाते, जजमानी चलाते हैं। इसके अतिरिक्त कथा बाँचते और अपना एवं अपने भाई का भरण-पोषण करते हैं।
कुलदीप एवं विधवा फुलमत के बीच प्रेम
एक दिन चाँदनी रात में मल्लाह परिवार की विधवा फुलमत मैरो पाण्डे के यहाँ अपनी बाल्टी माँगने आती है। बाल्टी देते समय कुलदीप फुलमत से टकरा जाता है। फुलमत मुस्कुराती है और कुलदीप उसकी और मुग्ध दृष्टि से देखता है। इसके बाद दोनों एक दूसरे से प्रेम करने लगते हैं।
भैरो पाण्डे के गुस्सा करने पर कुलदीप का घर से चले जाना
एक दिन चाँदनी रात में कर्मनाशा के तट पर कुलदीप एवं फुलमत मिलते हैं। पहले से ही दोनों पर नजर रख रहे मैरो पाण्डे को कुलदीप पर इतना क्रोध आता है कि वह उसके गाल पर थप्पड़ जड़ देता है। इस घटना के बाद कुलदीप घर से भाग जाता है और बहुत ढूँढने पर भी नहीं मिलता।
कर्मनाशा नदी में बाढ़ का आना
कुलदीप को घर से भागे 4-5 महीने बीत चुके हैं। कर्मनाशा नदी में बाढ़ आती हैं, जिससे होने वाली तबाही की आशंका से सभी भयभीत हैं। गाँव वालों में यह अन्धविश्वास प्रचलित है कि कर्मनाशा जब उमड़ती है, तो मानव-बलि अवश्य लेती हैं। फुलमत द्वारा बच्चे को जन्म देने की खबर गाँव में फैल जाती है और गाँव वाले कर्मनाशा की बाढ़ का कारण फुलमत को ही समझने लगते हैं। उसके बच्चे को उसका पाप समझते हैं। उनकी धारणा है कि पुलमत की बलि पाकर कर्मनाशा शान्त हो जाएगी।
भैरो पाण्डे का अन्तर्द्वन्द्व
जब यह सूचना मैरी पाण्डे को मिलती है तो पहले वे सोचते हैं कि चलो अच्छा ही है। परिवार के लिए कलंक बनाने वाली अपने आप ही रास्ते से हट जाएगी, लेकिन फिर उन्हें यह व्यवहार क्रूर, अमानवीय लगने लगता है और उनके मन में भावनाओं का संघर्ष होने लगता है। अन्त में सत्य एवं मानवीय भावनाओं की विजय होती है और वे फुलमत एवं उसके बच्चे को बचाने चल पड़ते हैं।
भैरो पाण्डे का अडिग एवं निर्भीक व्यक्तित्व
कर्मनाशा नदी के तट पर गांववासियों से घिरी फुलमत के पास पहुँचकर मैरो पाण्डे निर्भीक स्वर में कहते हैं कि उसने कोई पाप नहीं किया है। वह उनके छोटे भाई की पत्नी हैं, उनकी बहू है और उसका बच्य। उसके छोटे भाई का बना है। मुखिया इसे भी पाप कहकर इसका दण्ड भोगने की बात कर है, तब मैरी पाण्डे कठोर स्वर में कहता है। कि यदि वे एक-एक के पापों को गिनाने लगे, तो वहीं से सभी लोगों को कर्मनाशा की धारा में जाना पड़ेगा। सहमे हुए स्त ववाशी मैरों पाई के चट्टान की तरह अडिग व्यक्तित्व को देखते रह जाते हैं। कर्मनाशा की लहरें इस सूखी जड़ से टकराकर पछाड़ खा रही थीं, पराजित हो रही थीं। ‘कर्मनाशा की हार’ वस्तुतः रूकियों की हार है।
‘कर्मनाशा की हार’ कहानी की समीक्षा
(2018, 14, 13, 12, 10)
‘कर्मनाशा की हार’ शिवप्रसाद सिंह द्वारा रचित एक चरित्र प्रधान सामाजिक कहानी है। उन्होंने इस कहानी के माध्यम से समाज में व्याप्त रूढ़िवादिता और अन्धविश्वास का विरोध किया है। प्रस्तुत कहानी की समीक्षा इस प्रकार है
कथानक
‘कनाशा की हार’ एक चरित्र प्रधान कहानी है। इसमें मैरो पाण्डे के व्यक्तित्व के माध्यम से बहानीकार ने प्रगतिशील सामाजिक दृष्टिकोण का समर्थन किया है। कहानी में कहीं भी दिखावा नहीं है। इसमें कहानीकार ने जीवन के छोटे-छोटे क्षणों को पिरोया है। लेखक ने कहानी के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि समाज का शक्तिशाली वर्ग समाज का ठेकेदार बना हुआ है। वह कुछ भी कर सकता है, जबकि कमजोर वर्ग यदि उन्हीं कार्यो को करता है, तो उन्हें दण्डित किया जाता है। इस कहानी में एक ब्राह्मण युवक कुलदीप अपने घर के समीप रहने वाली मल्लाह परिवार की विधवा फुलमत से प्रेम करने लगता है|
परिवार के सदस्य उसे स्वीकार नहीं करते तथा अपने बड़े भाई मैरों पाण्डे की डॉट से घबराकर कुलदीप घर छोड़कर भाग जाता है। फुलमत एक बच्चे को जन्म देती है। तभी र्मनाशा नदी में बाढ़ आ जाती है, जिसे लोग फुलमत के पाप का परिणाम मानकर उसे और उसके बच्चे को नदी में फेंककर बलि देना चाहते हैं, जिससे नदी में आई बाढ़ समाप्त हो। इसका विरोध करते हुए प्रगतिशील मैरी पाण्डे उसे अपनी कुलवधू के रूप में स्वीकार करके गाँव वालों का मुँह बन्द कर देते हैं।
पात्र और चरित्र-चित्रण
प्रस्तुत कहानी में मुख्य पात्र भैरो पाण्डे हैं। मैरो पाण्डे को ही कहानी का नायक भी कहा जा सकता है। इनका चरि-चित्रण बहुत ही मनोवैज्ञानिक ढंग से हुआ है। प्रारम्भ में वे लोक-लाज से आतंकित हैं, लेकिन शीघ्र ही उनमें मानवतावादी दृष्टिकोण प्रस्फुटित होता है। वे कायरता छोड़कर उदारता का परिचय देते हैं और मानवता की रक्षा के लिए पूरे समाज से ड़ि जाते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य उल्लेखनीय पात्रों में कुलदीप एवं फुलमत हैं।
कुलदीप में किसी सीमा तक मर्यादा का बोध भी है, जिसके कारण वह चुपचाप घर छोड़कर चला जाता है, जबकि फुलमत अपने प्रेम की निशानी अपने बच्चे को जन्म देकर अपनी पवित्र भावना को दर्शाती है। मुखिया ग्रामीण समाज का प्रतिनिधि तथा अन्धदियों का समर्थक चरित्र है। वह ईष्र्यालु एवं क्रूर है। इस प्रकार, चरित्र चित्रण की दृष्टि से यह एक सफल कहानी है।
कथोपकथन या संवाद
इस कहानी की संवाद योजना में नाटकीयता के साथ-साथ सजीवता तथा स्वाभाविकता के गुण भी मौजूद हैं। संवाद, पात्रों के चरि-उद्घाटन में सहायक हुए हैं, जिससे पात्रों की मनोवृत्तियों का उद्घाटन हुआ है। वे संक्षिप्त, रोचक, गतिशील, सरस और पात्रानुकूल हैं।
देशकाल और वातावरण
‘कर्मनाशा की हार’ एक आँचलिक कहानी है। इस कहानी में स्वाभाविकता लाने के उद्देश्य से वातावरण की सृष्टि की ओर विशेष ध्यान दिया गया है। एक कुशल शिल्पी की तरह कथाकार नै देशकाल और वातावरण का चित्रण किया है। इसके अन्तर्गत सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक परिस्थितियों का चित्रण हुआ है। लेखक ने कर्मनाशा की बाढ़ का चित्र ऐसा खींचा है, जैसे पाठक किनारे पर खडा होकर बाढ़ का भीषण ढूश्य देख रहा हो |
भाषा-शैली
भाषा में ग्रामीण शब्दावली मानुष, डीह, तिताई, दस, बिटवा, चौरा आदि का प्रयोग किया गया है। साथ ही मुहावरे तथा लोकोक्तियों का भी प्रयोग करके कथा के वातावरण को सजीव बनाया गया है, जैसे-दाल में काला होना, पेट में जैसे-हौसला, सैलाब आदि के साथ-साथ दोहरे प्रयोग वाले शब्द; जैसे-लोग-बाग, उठल्ले-निठल्ले आदि के कारण भाषा में और अधिक सजीवता आ गई है।
इस कहानी में शिल्पगत विशेषताओं व अधिक फ्लैशबैक की पद्धति का प्रयोग करके लेखक ने घटनाओं की तारतम्यता को कुशलता से जोड़ा है। कहानी की शैली की एक और विशेषता है सजीव चित्रण और सटीक उपमाएँ। कहानीकार में बाढ़ की विभीषिका का बड़ा ही जीवन्त तथा रोमांचक चित्रण किया है।
उद्देश्य
उपेक्षिता के प्रति सहानुभूति एवं संवेदना व्यक्त करना तथा उनके अधिकारों के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा देना इस कहानी का एक मुख्य उद्देश्य है। इसमें शोषित वर्ग की आवाज को बुलन्द किया गया है। यह कहानी प्रगतिशीलता एवं मानवतावाद का समर्थन करती है। इसमें अन्धविश्वासों को खण्डित किया गया हैं तथा वैययिक व सामाजिक सभी प्रकार के स्तरों पर होने वाले शोषण का विरोध किया गया है।
शीर्षक
प्रस्तुत कहानी का शीर्षक कथावस्तु को पूर्णतः सफल बनाने का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें प्रतीकात्मक भाव स्वतः ही देखने को मिलता है। ‘कर्मनाशा नदी’ को इस कहानी में अन्धकार निरर्थक तथा रूदि के प्रतीक के रूप में चित्रित कर कहानीकार ने अपनी लेखनी का सफल सामंजस्य किया है। अन्त में कर्मनाशा नदी को नरबलि का न मिलना उसकी हार तथा मानवता की विजय को प्रदर्शित करता है। अतः ‘कर्मनाशा की हार’ शीर्षक सरल, संक्षिप्त, नवीन व कौतूहलवक है, जो कहानी की कथावस्तु के अनुरूप सटीक व अत्यन्त सार्थक बन पड़ा है।
भैरो पाण्डे का चरित्र-चित्रण
(2018, 17, 16, 14, 13, 12, 11, 10, 07)
शिवप्रसाद सिंह द्वारा रचित कहानी ‘कर्मनाशा की हार के मुख्य पात्र भैरो पाण्डे का प्रगतिशील एवं निर्भीक चरित्र रूढ़िवादी समाज को फटकारते हुए सत्य को स्वीकार करने की भावना को बल प्रदान करता है। मैरों पाण्डे के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ उल्लेखनीय हैं-
कर्तव्यनिष्ठा एवं आदर्शवादिता
भैरो पाण्डे पुरानी पीढ़ी के आदर्शवादी व्यक्ति हैं, जो अपने भाई को पुत्र की भाँति पालते हैं तथा पंगु होते हुए भी स्वयं परिश्रम करके अपने भाई की देखभाल में कोई कमी नहीं होने देते।
विचारशीलता
भैरो पाण्ड़े एक सच्चरित्र, गम्भीर एवं विचारशील व्यक्तित्व से सम्पन्न हैं। वे गाँव के सभी लोगों की वास्तविकता से परिचित हैं, लेकिन किसी के राज़ को कभी उजागर नहीं करते हैं। वे तथ्यों का बौद्धिक एवं तार्किक विश्लेषण करते हैं।
भ्रातृत्व-प्रेम
मैंरों पाण्डे को अपने छोटे भाई से अत्यधिक प्रेम है। उन्होंने पुत्र के समान अपने भाई का पालन-पोषण किया है। इसीलिए कुलदीप के घर से भाग जाने पर पाण्डे दुःख के सागर में डूबने-उतरने लगता है|
मर्यादावादी और मानवतावादी
प्रारम्भ में भैरो पाण्डे अपनी मर्यादावादी भावनाओं के कारण फुलमत को अपने परिवार का सदस्य नहीं बना पाते हैं, लेकिन मानवतावादी भावना से प्रेरित होकर वे फुलमत एवं उसके बच्चे की कर्मनाशा नदी में बलि देने का कड़ा विरोध करते है तथा उसे अपने परिवार का सदस्य स्वीकार करते हैं।
प्रगतिशीलता
मैरो पाण्ड़े के विचार अत्यन्त प्रगतिशील हैं। वे अन्धविश्वासों का खण्डन एवं रूढ़िवादिता का विरोध करने को तत्पर रहते हैं। ये कर्मनाशा की बाढ़ को रोकने के लिए निर्दोष प्राणियों की बलि दिए जाने सम्बन्धी अन्धविश्वास का विरोध करते हैं। वे बौद्धिक एवं तार्किक दृष्टिकोण से बाढ़ रोकने के लिए बाँध बनाने का उपाय सुझाते हैं।
निर्भीकता एवं साहसीपन
मैरो पाण्ड़े के व्यक्तित्व में निर्भीकता एवं साहसीपन के गुण निहित (समाए) हैं। वह मुखिया सहित गाँव के सभी लोगों के सामने अत्यन्त ही निडरता के साथ कर्मनाशा को मानव बल दिए जाने का विरोध करता है। यह साहस से कहते हैं कि यदि लोगों के पापों का हिसाब देने लगें तो यहाँ उपस्थित सभी लोगों को कर्मनाशा की धारा में समाना होगा। उनकी निभव।। एवं साहस देखकर सभी लोग स्तब्ध रह जाते हैं। इस प्रकार, मैरो पाण्ड़े मानवतावादी भावना के बल पर सामाजिक रूदियों का निडरता के साथ विरोध करते हैं तथा कर्माशा की लहरों को पराजित होने के लिए विवश कर देते हैं।