Chapter 6 बिहारी के दोहे

समस्त पद्याशों की व्याख्या

नीति के पद

बड़े न हूजै …………………………………….…………………….. जाय ॥1॥
संदर्भ-प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्यपुस्तक मंजरी’ के बिहारी के नामक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता बिहारी लाल जी हैं।
प्रसंग-प्रस्तुत दोहे में कवि ने गुणों की महत्ता का वर्णन किया है। (UPBoardSolutions.com)
व्याख्या-कविवर बिहारी लाल जी कहते हैं कि कोई भी मनुष्य चाहे कितना ही बड़ा यश प्राप्त क्यों न कर ले परन्तु बिना गुणों के महान नहीं हो सकता, जैसे- धतूरे को भी कनक कहा जाता है। परन्तु उसका गहना नहीं बन सकता।

अति अगाध………………………………………………………… बुझाइ॥2॥
संदर्भ एवं प्रसंग-
पूर्ववत्।
व्याख्या
-नदी, कुआँ, तालाब और बावड़ी कितने ही गहरे हों या कितने ही उथले। जिसके द्वारा किसी की प्यास बुझ जाए (शान्त हो जाए), वही उसके लिए समुद्र के समान होता है।

ओछे बड़े ………………………………………………………………नैन ॥3॥
संदर्भ एवं प्रसंग-
पूर्ववत्।
व्याख्या-
छोटे कभी बड़े नहीं हो सकते हैं। चाहे वे कितना भी ऐंठकर गगन छूने की कोशिश क्यों न कर लें। छोटी वस्तु बड़ी नहीं हो सकती चाहे उसे कितना भी आँखें फाड़कर क्यों न देखा जाय।

कनक कनक ……………………………………………………….बौराय ॥4॥
संदर्भ एवं प्रसंग-
पूर्ववत्।
व्याख्या-धतूरे की अपेक्षा सोने में सौ गुना अधिक मादकता होती है, क्योंकि धतूरे को खाने पर आदमी पागल हो जाता है, जबकि सोने (स्वर्ण) की प्राप्ति होने पर भी वह पागल हो जाता है अर्थात् । सोना मिलने पर वह घमण्डी हो जाता है।

दिन दस………………………………………………………….. सनमानु ॥5॥
संदर्भ एवं प्रसंग-पूर्ववत्।
व्याख्या-मनुष्य को यह बात जान लेनी चाहिए कि उसका थोड़े दिन ही आदर (सम्मान) होता है। जिस प्रकार श्राद्ध पक्ष (क्वार मास के आरंभिक पन्द्रह दिन) में कौए को बुला-बुलाकर आदर होता है।

बिहारी के दोहे कक्षा 8 भक्ति के पद

 बन्धु भएँ ……………………………………….…….. कहाई ॥1॥
संदर्भ एवं प्रसंग-पूर्ववत्।
व्याख्या-हे रघुराई, आपने गरीब के बन्धु बनकर उसे संसार सागर से पार उतार दिया। आप प्रसन्न हो जाइए और मेरा उद्धार कीजिए जिससे आपके बड़े होने  की बड़ाई झूठी न हो।

मोहन मूरति …………………………..……………. जग होई ॥2॥
संदर्भ एवं प्रसंग-पूर्ववत्।
व्याख्या-
श्याम की मोहने वाली मूर्ति की अद्भुत गति होती है। यह जिसके अच्छे हृदय में बस जाती है, उससे सारा संसार प्रतिबिम्बित हो जाता है। भजन कयौ …………………………………………………….गॅवार ॥3॥

संदर्भ एवं प्रसंग-पूर्ववत्।
व्याख्या-हे मूर्ख! तुम्हें जिसका भजन (गुणगान) करने के लिए कहा गया, उसे तो तुमने एक बार भी नहीं भजा, किंतु तुम्हें जिन दुर्गुणों से दूर रहने के लिए कहा गया, तुमने उन्हीं दुर्गुणों को अपनाया।

प्रश्न-अभ्यास

कुछ करने को-                             नोट-विद्यार्थी स्वयं करें।
विचार और कल्पना-

प्रश्न 1.
‘धतूरे’ की अपेक्षा ‘सोने’ को अधिक मादक क्यों कहा गया है?
उत्तर-
मनुष्य जितना पागल धतूरे को खाने से होता है उससे सौ गुना अधिक पागल सोने (स्वर्ण) को केवल पाने से हो जाता है। अतः सोने में अधिक मादकता होती है।

प्रश्न 2.
नीति के दोहों में कोई न कोई मूल्य छिपा होती है, जैसे-पहले दोहे में व्यक्ति अपने गुणों से बड़ा होता है’ से सम्बन्धित मूल्य है। इसी प्रकार निम्नलिखित मूल्यों से सम्बन्धित दोहों को लिखिए
(क) दिखावा करने से बड़प्पन नहीं आता।
उत्तर-बड़े न हुजै गुनन बिन, बिरद-बड़ाई पाय।कहत धतूरे सो कनक, गहनों गढ्यौ न जाय।
(ख) स्वयं अपनी प्रशंसा नहीं करनी चाहिए। (UPBoardSolutions.com)
उत्तर- ओछे बड़े न ह्वै सकें, लगौं सतर ह्वै गैन। दीरघ होहिं न नैकहूँ, फारि निहारै नैन।
(ग)
जिस वस्तु से हमारा कार्य सिद्ध हो, वही महत्त्वपूर्ण है।
उत्तर- अति अगाध, अति ओथरो, नदी, कूप, सर बाइ।सो ताकौ सागर जहाँ, जाकि प्यास बुझाइ।
(घ) गुण, सौंदर्य से अधिक महत्त्वपूर्ण है।
उत्तर- बड़े न हूजे गुनन बिन, विरद बंड़ाई पाय। कहत धतूरे सों कनक, गहनों गढ्यो न जाय।

कविता से-

प्रश्न 1.
‘नाम बड़ा होने से ही कोई बड़ा नहीं हो सकता’ इस कथन की पुष्टि के लिए कवि ने कौन-सा उदाहरण दिया है?।
उत्तर-धतूरे को कनक (सोना) कहने से वह बड़ा नहीं हो जाता क्योंकि उससे गहने नहीं बनाए जा सकते। (उसमें बड़ा होने का गुण नहीं है।) –

प्रश्न 2.
कवि ने नदी, कूप, सर, बावली को सागर के समान किस स्थिति में सागर माना है?
उत्तर-
कवि ने नदी, कूप, तालाब और बावली को सागर के समान इसलिए माना है क्योंकि इन्होंने जिसकी प्यास बुझाई उसके लिए तो यह सागर ही है।

प्रश्न 3.
‘छोटे बड़े नहीं हो सकते’ इसके लिए कौन सा उदाहरण दिया गया है?
उत्तर-
छोटे बड़े नहीं हो सकते’ उदाहरणार्थ हम लाख अपनी आँखें फाड़-फाड़ कर क्यों न देखें, छोटी वस्तु हमें बड़ी नहीं दिखाई दे सकती। .

प्रश्न 4.
कृष्ण की मोहन मूरति क्यों अद्भुत है?
उत्तर-
कृष्ण की मोहन मूरति इसलिए अद्भुत है क्योंकि उन्होंने गरीब का बन्धु बनकर उन्हें भव सागर से पार उतार दिया।

प्रश्न 5.
पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए
(क) सो ताकौ सागर जहाँ, जाकी प्यास बुझाई।
भाव-
जिसकी जो प्यास बुझा दे उसके लिए तो वही सागर है।
(ख)
दूरि भजन जातें कयौ, सौ रौं भन्यौ गॅवार।
भावे-तुम्हें जिन दुर्गुणों से दूर रहने के लिए कहा गया; तुमने उन्हीं दुर्गुणों को अपनाया।
(ग) तूठे तूठे फिरत हौ, झूठे बिरद कहाई।।
भाव-दीन बन्धु आप मेरा उद्धार कीजिए जिससे आपके बड़े होने की बडाई झुठी न हो।

भाषा की बात-

प्रश्न 1.
कविता में प्रयुक्त निन्नलिखित शब्दों को देखिए और उनके खड़ी बोली के रूप पर ध्यान दीजिए। सो = वह, ताकौ = उसके लिए, हुवै सकें = हो सके। नीचे लिखे शब्दों के खड़ी बोली रूप लिखिए
उत्तर-
तऊ = उससे, ताते = उतना, जातें = जितना, कह्यौं = कहा।

प्रश्न 2.
कविता में जहाँ एक ही शब्द दो या दो से अधिक बार आए और उसका अर्थ भिन्न-भिन्न हो, वहाँ यमक अलंकार होता है। नीचे लिखी पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है और क्यों?
उत्तर-
(क)
भजन कयौ, ताते भन्यौ, भन्यौ न एकौ बार।
दूरि भजन जातें कह्यौ, सौ तों भन्यौ गॅवार। यमक अलंकार है क्योंकि भजन और भज्यौ शब्द दो बार आकर भिन्न-भिन्न अर्थ में प्रयुक्त हुए हैं।
(ख)
‘इस धरा का इस धरा पर ही धरा रह जायेगा।
(ग)
“काली घटा का घमण्ड घटा’

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *