Chapter 8 आदि गुरु शंकराचार्य

पाठ का सारांश

शंकराचार्य का बचपन का नाम शंकर था। इनका जन्म आठवीं सदी में केरल में पूर्णा नदी के तट पर स्थित कालड़ी ग्राम में हुआ। इसके पिता का नाम शिवगुरु व माता आर्यम्बा थी। शंकर के पिता व दादा वेद-शास्त्री के धुरन्धर पण्डित थे। ज्योतिषियों ने शंकर के पिता को बताया कि उनका पुत्र महान पण्डित, यशस्वी और भाग्यशाली होगा। तीन वर्ष की उम्र में शंकर के पिता का देहान्त होने पर माँ ने अध्ययन के लिए गुरु के पास भेजा। थोड़े ही समय में वेदशास्त्रों और धर्मग्रन्थों में पारंगत होने से इनकी गणना प्रथम कोटि के पण्डितों में होने लगी।

विद्याध्ययन के बाद शंकर घर लौटे। माँ से आज्ञा लेकर वह संन्यासी बनने नर्मदा के तट पर तपस्या में लीन संन्यासी गोविन्दनाथ के पास पहुँचे। उन्होंने इनका नाम शंकराचार्य रखा। ये गुरु की अनुमति लेकर सत्य की खोज में निकल पड़े। गुरु ने पहले काशी जाने का सुझाव दिया।

काशी में गंगास्नान करने जाते हुए उन्हें एक चाण्डाल मिला। उसकी बातों से इन्हें सत्य का ज्ञान हुआ। इन्होंने काशी के प्रकाण्ड विद्वान मण्डन मिश्र और उनकी पत्नी भारती को शास्त्रार्थ में हराकर अपना शिष्य बना लिया। ये बड़े-बड़े विद्वानों को परास्त करने वाले दिग्विजयी पण्डित कुमारिल भट्ट से शास्त्रार्थ करने प्रयागधाम पहुँचे। इसी प्रकार ये अन्य स्थानों पर भी भ्रमण करते रहे। जब ये 2शृंगेरी में थे तो इन्हें माँ की बीमारी का पता चला। ये तत्क्षण अपनी माँ के पास पहुँच गए। माँ इन्हें देखकर खुश हुई। माँ की मृत्यु के बाद लोगों द्वारा विरोध किए जाने के बावजूद इन्होंने माँ का दाह-संस्कार किया। शंकाराचार्य ने धर्म की  स्थापना के लिए सारे भारत का भ्रमण किया। उन्होंने नए मन्दिरों का निर्माण कराया और पुराने मन्दिरों की मरम्मत कराई। लोगों को राष्ट्रीयता के सूत्र में पिरोने के लिए इन्होंने भारत के चारों कोनों पर चार धामों (मठों) की स्थापना की। इनके नाम हैं- श्री बद्रीनाथ, द्वारिकापुरी, जगन्नाथपुरी तथा श्री रामेश्वरम्। ये चारों धाम आज भी मौजूद हैं। इनकी शिक्षा का सार है

“ब्रह्म सत्य है तथा जगत् माया है।”

शंकराचार्य उज्ज्वल चरित्र के सच्चे संन्यासी थे, जिन्होंने अनेक ग्रन्थों की रचना की। 32 वर्ष की आयु में उनका देहावसान हो गया। उनका अन्तिम उपदेश था, “हे मानव! तू स्वयं को पहचान, स्वयं को पहचानने के बाद तू ईश्वर को पहचान जाएगा।”

अभ्यास – प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
प्रश्न 1.
बालक शंकर के विषय में ज्योतिषियों ने क्या कहा था?
उत्तर :
लक शंकर के विषय में ज्योतिषियों ने कहा था, “शंकर महान पण्डित, यशस्वी और भाग्यशाली होगा।”

प्रश्न 2.
गुरु शंकराचार्य को सत्य का ज्ञान कहाँ और कैसे हुआ?
उत्तर :
गुरु शंकराचार्य को सत्य को ज्ञान काशी में एक चाण्डाल से मिलने पर हुआ। चाण्डाल ने शरीर को नश्वर और आत्मा को एक ही बताया क्योंकि ब्रह्म एक है।

प्रश्न 3.
गुरु शंकराचार्य का अन्तिम उपदेश क्या था?
उत्तर :
शंकराचार्य का अन्तिम उपदेश था “हे मानव! तू स्वयं को पहचान, स्वयं को पहचानने के बाद, तू ईश्वर को पहचान जाएगा।”

प्रश्न 4.
शंकराचार्य की शिक्षा का सार क्या है?
उत्तर :
शंकराचार्य की शिक्षा का सार है- “ब्रह्म सत्य है तथा जगत मिथ्या है’

प्रश्न 5.
गुरु शंकराचार्य द्वारा कौन से मठों की स्थापना की गई है?
उत्तर :
बदरीनाथ, द्वारिकापुरी, जगन्नाथपुरी तथा श्री रामेश्वरम्।

प्रश्न 6.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए (पूर्ति करके)

  • इनका परिवार पाण्डित्य के लिए विख्यात था।
  • इनके गुरु भी इनकी प्रखर मेधा को देखकर आश्चर्यचकित थे।
  • गुरु शंकराचार्य का देहावसान मात्र बत्तीस वर्ष की अवस्था में हो गया।

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