chapter 8 श्रम एव विजयते
शब्दार्थाः- द्वारादिनिर्माणहेतोः = द्वार आदि के निर्माण के लिए, उत्थाप्य = उठाकर, काष्ठस्य = लकड़ी का, यानम् = सवारी, आरोपयितुं = चढ़ाने के लिए यतमानाः = प्रयत्नशील, अतिभारवत्तवात् = अधिक भारी होने से, अक्षमाः = असमर्थ, दूरतः = दूर से, तुरङ्गाधिरूढः = घोड़े पर सवार, सुकरम् = सरल (आसान), परिधानम् = वस्त्र, आगच्छन् = आता हुआ, अश्वसादी = घुड़सवार, अवधेयम् = याद रखें, प्राशंसन् = प्रशंसा किए, आपतेत् = आए, स्मर्यताम् = याद करें, अभिजानन् = जानते हुए।
अमेरिका देशे ……………………………………………………………. एतद् भूयोभूयः अवधेयम।
हिन्दी अनुवाद – अमेरिका में एक स्थान पर आवास के निर्माण का कार्य चल रहा था। वहाँ दरवाजे आदि बनाए जाने के लिए लकड़ी के भारी लट्ठे लाए जा रहे थे। कुछ सैनिक विशाल लट्ठे को भूमि से उठाकर यान में डालने के लिए प्रयत्नशील थे। किन्तु काठ के बहुत भारी होने से बहुत यत्न करने पर भी वे सफल नहीं हो रहे थे। उन सैनिकों का एक नायक भी था, जो दूर से ही अधिक बल प्रयोग के लिए उनको प्रेरित कर रहा था। इसी बीच घोड़े पर सवार एक व्यक्ति वहाँ आया। उसने भार उठाने में अक्षम सैनिकों को देखकर नायक से कहा, “आप देख क्या रहे हैं? यदि इनका हाथ बँटा दें, तो कार्य शीघ्र सम्पन्न हो जाएगा।” इस पर नायक बोला, “आप ही सहयोग क्यों नहीं कर देते? मैं इनका अधिकारी हूँ; इनके संग कार्य क्यों करूं?” इतना सुनते ही घुड़सवार घोड़े से उतरा अपने कोट आदि वस्त्र उतारकर भूमि पर रख उन सैनिकों की मदद करने लगा। लट्ठा यान में डाल दिया गया। सभी सैनिकों ने घुड़सवार की प्रशंसा की। नायक ने भी उसका धन्यवाद किया।
इसके बाद वह व्यक्ति घोड़े पर पुन: सवार हो नायक से बोला, “महाशय! यदि फिर कभी ऐसा अवसर आए, तो प्रधान सेनापति वाशिंगटन को याद कर लीजिएगा; वह पुनः उपस्थित हो जाएगा।” अपने महान सेनापति का परिचय पाते ही नायक बहुत लज्जित हुआ। वह क्षमायाचना करने लगा। इस पर वाशिंगटन ने कहा, “कर्तव्य में कोई भी कार्य महान या हीन नहीं होता: यह याद रहे!”
अभ्यासः
प्रश्न 1.
उच्चारणं कुरुत पुस्तिकायां च लिखत
नोट – विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरत –
(क) किमर्थं काष्ठस्य गुरुतरः खण्डः नीयते स्म?
उत्तर :
द्वारादि निर्माण हेतोः काष्ठस्य गुरुतरः खण्डः नीयतेस्म।
(ख) सैनिकाः कथं बहुप्रत्यये अपि अक्षमाः जाताः?
उत्तर :
सैनिकाः अतिभारवत्त्वात् बहुप्रत्यये अपि अक्षमाः जाताः।
(ग) कः दूरतः एव अधिकबलप्रयोगाय तान् प्रेरयति स्म।
उत्तर :
नायकः दूरतः एव अधिक बलप्रयोगाय तान् प्रेरयतिस्म।
(घ) तुरगाधिरूढः पुरुषः सैनिकान् विलोकयन् नायकं किम् अवदत्?
उत्तर :
तुरगाधिरूढः पुरुषः सैनिकान् विलोकयन् नायक अवदत्- किं पश्यति भवान सहयोग कुरु स्यात्।।
प्रश्न 3.
अधोलिखितपदानां विभक्तिं वचनं च लिखत (लिखकर)
प्रश्न 4.
अधोलिखितक्रियापदानां लकारं पुरुषं वचनं च लिखत (लिखकर)
प्रश्न 5.
उपसर्गं लिखत (लिखकर)
पदम् उपसर्गः
अधिरुढः अधि
प्रोवाच प्र
अभिजानन् अभि
विलोकयन् वि
प्रश्न 6.
संस्कृतभाषायाम् अनुवादं कुरुत (अनुवाद करके)
(क) सैनिकों के आवास के लिए निर्माणकार्य चल रहा था।
अनुवाद : सैनिकानाम् आवासाय निर्माणकार्य प्रचलत् आसीत्।
(ख) उन सैनिकों का एक नायक भी था।
अनुवाद : तेषां सैनिकानाम् एक: नायक: आपि आसीत्।
(ग) वह घुड़सवार घोड़े से उतरा।
अनुवाद : सः अश्वासादी अश्वात् अवातरेत्।
(घ) कोई भी कार्य बड़ा या छोटा नहीं होता।
अनुवाद : कोऽपि कार्यं गुरु लघु वा न भवति।
(ङ) मैं खाता हुआ नहीं चलता हूँ।
अनुवाद : अहं खादन् न चलामि।
(च) मैं हँसता हुआ पानी नहीं पीता हूँ।
अनुवाद : अहं हसन् जलं न पिबामि।