Chapter 8 हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद
किसी भी भाषा के वाक्यों को दूसरी भाषा के शब्दों में शब्दशः या भावत: बदलने को अनुवाद कहते हैं। अनुवाद शब्द दो शब्दों-अनु = पश्चात्, वाद = कहना–से मिलकर बना है। इसका तात्पर्य है-एक बात को फिर से कहना अर्थात दूसरे अन्य शब्दों में बदलकर कहना। प्रसिद्ध अर्थ में एक भाषा को दूसरी भाषा में परिवर्तित करने को अनुवाद कहते हैं।
यद्यपि संस्कृत भाषा में शब्दों के क्रम में उलट-फेर करने से वाक्य के अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं होता, फिर भी अनुवाद की सरलता के लिए संस्कृत के वाक्यों का क्रम भी हिन्दी के समान ही होता है; अर्थात् पहले कर्ता, फिर कर्म और अन्त में क्रिया। यह संस्कृत की अपनी विशेषता है कि इसमें कर्ता, कर्म और क्रिया का क्रम आगे-पीछे भी हो सकता है; जैसे-“मैं विद्यालय जाता हूँ।” का संस्कृत में अनुवाद अहं विद्यालयं गच्छामि।’ किया जाता है। फिर भी इसके क्रम को बदलने–विद्यालयम् अहं गच्छामि। गच्छामि विद्यालयम् अहम्। गच्छामि अहं विद्यालयम्- से वाक्य के अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं होता!
संस्कृत में अनुवाद करने के लिये निम्नलिखित बातों का ज्ञान परमावश्यक है
(1) वचन- संस्कृत में तीन वचन होते हैं
(क) एकवचन–एक वस्तु के लिए।
(ख) द्विवचन-दो वस्तुओं के लिए।
(ग) बहुवचन-दो से अधिक वस्तुओं के लिए।
सम्मान प्रदर्शन करने के लिए बहुधा बहुवचन सूचक शब्दों का प्रयोग किया जाता है। संस्कृत में अनुवाद करते समय छात्रों को वचन का प्रयोग करते समय अत्यधिक सावधानी रखनी चाहिए।
(2) पुरुष- संस्कृत में पुरुष भी तीन ही होते हैं|
(क) प्रथम पुरुष या अन्य पुरुष–जिसके विषय में बात कही जाये (सः = वह, तौ = वे दोनों, ते = वे सब, भवान् = आप, भवन्तौ = आप दोनों, भवन्तः = आप सब)।
(ख) मध्यम पुरुष-जिससे बात कही जाये (त्वम् = तुम, युवाम् = तुम दोनों, यूयम् = तुम सब)।
(ग) उत्तम पुरुष–बात कहने वाला (अहम् = मैं, आवाम् = हम दोनों, वयम् = हम सब)।
(3) कर्ता- क्रिया के करने वाले कर्ता कहते हैं। कर्ता में प्रथमा विभक्ति का प्रयोग होता है। क्रिया से पहले ‘कौन’ लगाने से उत्तर में जो शब्द प्राप्त होता है, उसे ही कर्ता कहते हैं।
(4) क्रिया- जिससे किसी काम को करना या होना पाया जाता है, उसे क्रिया कहते हैं।
(5) काल-क्रिया के तीन प्रमुख काल होते हैं|
(क) वर्तमानकाल–जिससे चल रहे समय का बोध हो। संस्कृत में इसके लिए लट् लकार का प्रयोग होता है।
(ख) भूतकाल–जिससे बीते हुए समय का बोध हो। संस्कृत में इसके लिए लङ् लकार का प्रयोग होता है।
(ग) भविष्यत्काल—जिससे आने वाले समय का बोध हो। संस्कृत में इसके लिए लुट् लकार का प्रयोग होता है।
(6) लिङ्ग- संस्कृत में लिंग का क्रिया पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। लिंग तीन प्रकार के होते हैं
(क) पुंल्लिङ्ग–इससे पुरुष जाति का बोध होता है।
(ख) स्त्रीलिङ्ग-इससे स्त्री जाति का बोध होता है।
(ग) नपुंसकलिङ्ग–जिससे न पुरुष जाति का बोध होता है और न स्त्री जाति का। अनुवाद करते समय छात्रों को लिंग प्रयोग करते समय सावधानी रखनी चाहिए।
(7) कारक- सामान्यत: कारक आठ माने जाते हैं; परन्तु संस्कृत में छ: कारक होते हैं। ‘सम्बन्ध और सम्बोधन’ को कोरक नहीं माना जाता। प्रत्येक कारक को विभक्ति एवं चिह्न सहित आगे दिया जा रहा है–
(8) पद- संस्कृत भाषा में हमेशा पदों का ही प्रयोग होता है। पद दो प्रकार के होते हैं-सुबन्त और तिङन्त। शब्दों में ‘सु’ इत्यादि प्रत्यय लगाये जाते हैं, इसलिए उससे निर्मित पद सुबन्त कहलाते हैं। धातुओं में ‘तिम्’ इत्यादि प्रत्यय लगाये जाते हैं, इसलिए उनसे निर्मित क्रियाएँ तिङन्त कहलाती हैं। अनुवाद करते समय सबसे पहले ‘कर्ता’ को ढूंढ़ना चाहिए। इसके बाद कर्ता के वचन और पुरुष पर ध्यान देना चाहिए। कर्ता का पुरुष और वचन जान लेने पर क्रिया के काल का निश्चय करना चाहिए। क्रिया का वही पुरुष और वचन होता है, जो उसके कर्ता का पुरुष और वचने होता है।
पाठ 1: संज्ञा तथा सर्वनाम (कर्ता) का तीनों पुरुषों एवं
वचनों की क्रिया के साथ समन्वय
- संस्कृत में प्राय: सभी संज्ञा तथा सर्वनाम कर्ताओं के रूप सातों विभक्तियों के तीनों वचनों में चलते हैं।
- संज्ञा कर्ताओं के रूप तीनों लिंगों में चलते हैं। संज्ञा कर्ताओं के सम्बोधन में भी रूप बनते हैं।
- सर्वनाम कर्ताओं के रूप भी तीनों लिंगों में पृथक्-पृथक् चलते हैं, किन्तु इनके सम्बोधन के रूप नहीं बनते।।
- जिस पुरुष और वचन का कर्ता होता है, उसके साथ क्रिया भी उसी पुरुष और वचन की लगती है।
- क्रिया पर कर्ता के लिंग का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। तीनों लिंगों के लिए सदैव एक समान क्रिया प्रयुक्त होती है।
- कर्तृवाच्य में कर्ता में सदैव प्रथमा विभक्ति होती है।
- मध्यम और उत्तम पुरुष में तीनों लिंगों के कर्ता एकसमान होते हैं।
- भवत् (आप) कर्ता होने पर क्रिया प्रथम पुरुष की प्रयोग की जाती है।
- त्वं, युवां, यूयं, अहं, आवां, वयं के अतिरिक्त सभी कर्ताओं के साथ प्रथम पुरुष की क्रिया प्रयोग की जाती है।
प्रथम पुरुष और प्रथमा विभक्ति के तीनों लिंगों के तीनों वचनों के संज्ञा एवं सर्वनाम कर्ताओं के रूप इस प्रकार होते हैं–
विशेष-शेष विभक्तियों के रूप ‘शब्द रूप प्रकरण’ के अन्तर्गत देखे जा सकते हैं। निम्नलिखित तालिकाओं में तीनों लिंगों के संज्ञा तथा सर्वनाम कर्ताओं का तीनों पुरुषों और वचनों की क्रियाओं के साथ समन्वय दर्शाया जा रहा है–
पाठ 2: अस धातु के रुप और उनका प्रयोग
पाठ 3: लङ् लकार (भूतकाल)
संस्कृत में भूतकाल के लिए चार लकारों का प्रयोग किया जाता है—लिट् लकार, लुङ् लकार, लङ् लकार, लुङ् लकार। वक्ता ने जिसका प्रत्यक्ष ने किया हो, वहाँ लिट् लकार; वक्ता ने जिसे प्रत्यक्ष देखा हो, वहाँ लङ् लकार तथा ‘ऐसा होता तो ऐसा होता’ शर्तयुक्त भूतकाल में लुङ् लकार प्रयुक्त होता है। शेष सभी प्रकार के भूतकालिक वाक्यों के लिए लुङ् लकार का प्रयोग होता है। भूतकाल में लङ् लकार का प्रयोग अन्य लकारों की अपेक्षाकृत अधिक होता है।
पाठ 4: तृट् लकार (भविष्यत्काल)
भविष्यत्काल की क्रिया का बोध कराने के लिए लुट् और लुट् दो लकारों का प्रयोग होता है, जिनमें लृट् लकार का ही प्रयोग सर्वाधिक होता है।
लृट् लकार में रूप बनाने के लिए धातु में ‘इ’ लगाकर ‘ष्य’ जोड़ने के बाद ‘ति’, ‘त:’, ‘न्ति’ आदि प्रत्यय जोड़ देते हैं। जिन धातुओं में ‘इ’ नहीं लगता, उनमें स्यति, स्यतः, स्यन्ति जोड़ा जाता है।
पाठ 5: लोट् लकार (आज्ञार्थ)
आज्ञा, प्रार्थना, इच्छा तथा आशीर्वाद के अर्थ में लोट् लकार का प्रयोग होता है। आज्ञा और प्रार्थना अर्थसूचक वाक्यों में कर्ता प्रायः छिपा रहता है, ऐसी स्थिति में क्रिया मध्यम पुरुष एकवचन की प्रयुक्त होती है।
पाठ 6 : विधिलिङ् लकार (विध्यर्थ)
इच्छा, सम्भावना, अनुमति तथा चाहिए के भाव को प्रकट करने के लिए विधिलिङ् लकार का । प्रयोग किया जाता है।
ध्यातव्य-हिन्दी में ‘चाहिए’ से युक्त वाक्यों में कर्ता में ‘को’ चिह्न लगा रहता है (जैसे—राम को पढ़ना चाहिए), यहाँ पर ‘को’ को कर्म कारक का चिह्न समझकर द्वितीया विभक्ति में अनुवाद नहीं करना चाहिए।
पाठ 7: कर्मकारक (द्वितीया विभक्ति)
जिस पर क्रिया का प्रभाव पड़ता है, उसको कर्मकारक कहते हैं। कर्म में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। क्रिया से सम्बन्ध रखने वाले जिस पदार्थ को, कर्ता अपने व्यापार से प्राप्त करने की सबसे अधिक इच्छा रखता है, उसे कर्म कहते हैं। कर्मकारक का चिह्न ‘को’ है। कभी-कभी यह चिह्न छिपा भी रहता है। क्रिया से पहले ‘किसको’ या ‘क्या’ लगाने पर उत्तर में जो कुछ आता है, वह कर्म है। उदाहरण–
द्विकर्मक धातुएँ (द्वितीया विभक्ति)
निम्नलिखित सोलह धातुएँ और उनके समान अर्थ वाली धातुएँ द्विकर्मक (इनके साथ दो कर्म होते हैं) होती हैं दुह् (दुहना), याच् (माँगना), पच् (पकाना), दण्ड् (दण्ड देना), रुध् (रोकना, घेरना), प्रच्छ (पूछना), चि (चुनना, इकट्ठा करना), बू (बोलना, कहना), शास् (शासन करना), जि (जीतना), मथ् (मथना), मुष (चुराना), नी (ले जाना), हृ (हरण करना), कृष् (खींचना, जोतना), वह (वहन करना, ढोना)। इन सभी द्विकर्मक धातुओं के योग में अपादान आदि कारकों में भी द्वितीया विभक्ति होती है। उदाहरण–
द्वितीया विभक्ति- उपपद विभक्ति कारकों से ही सदैव विभक्तियों का निर्देश नहीं होता है। कुछ अव्ययों के योग में भी विशेष नियमों के अनुसार विशेष विभक्ति होती है। ऐसी स्थिति में उसे उपपद विभक्ति कहते हैं। उपपद विभक्ति से कारक विभक्ति बलवान् होती है। उपपद विभक्ति के प्रमुख नियम इस प्रकार हैं–
पाठ 8 : करण कारक (तृतीया विभक्ति)
कर्ता अपने कार्य को पूरा करने में जिसकी सहायता लेता है, उस साधन में तृतीया विभक्ति होती है। तृतीया विभक्ति का चिह्न ‘से’ या ‘के द्वारा है। उदाहरण–
तृतीया विभक्ति–उपपद विभक्ति
नियम-
- ‘साथ’ का अर्थ रखने वाले सह, साकम्, सार्द्धम्, समम् शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है।
- जिस शब्द से शरीर के किसी अंग का विकार सूचित होता है, उस अंगवाचक शब्द में तृतीया विभक्ति होती है।
- समानार्थक तुल्यः, समः, समानः शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है।
- किसी वस्तु के मूल्य में तृतीया विभक्ति होती है।
- निषेधार्थक ‘अलम्’ के योग में तृतीया विभक्ति होती है।
- किम्, कार्यम्, कोऽर्थः, प्रयोजनम् के योग में तृतीया विभक्ति होती है।
- हेतु (कारण) में तृतीया विभक्ति होती है।
- जिसकी सौगन्ध ली जाती है उसमें तृतीया विभक्ति होती है।
- प्रकृति और स्वभाव आदि या किसी के कार्य करने की विधि में तृतीया विभक्ति का प्रयोग होता है। उदाहरण–
पाठ 9: सम्प्रदान कारक (चतुर्थी विभक्ति)
जिसको कोई वस्तु दी जाती है या जिसके लिए कोई कार्य किया जाता है, उसे सम्प्रदान कारक कहते हैं। सम्प्रदान कारक में चतुर्थी विभक्ति होती है। सम्प्रदान का चिह्न ‘को’ या के लिए है। उदाहरण–
चतुर्थी विभक्ति-उपपद विभक्ति नियम
- ‘रुच्’ धातु या उसके समान अर्थ वाली धातु के योग में प्रसन्न होने वाले में चतुर्थी विभक्ति होती है।
- ‘स्पृह’ धातु के योग में ईप्सित पदार्थ में चतुर्थी विभक्ति होती है।
- क्रुध्, द्रुह, असूय् धातुओं के योग में, जिसके प्रति क्रोध आदि किया जाता है, उसमें चतुर्थी विभक्ति होता है।
- नमः, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा तथा अलम् के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है। उदाहरण–
पाठ 10: अपादान कारक (पञ्चमी विभक्ति)
जिससे कोई वस्तु अलग होती है, उसे अपादान कारक कहते हैं। अपादान कारक में पञ्चमी विभक्ति होती है। अपादान का चिह्न ‘से’ (from, अलग होने के अर्थ में) है। उदाहरण–
पञ्चमी विभक्ति–उपपद विभक्ति नियम-
- जिससे भय लगता हो अथवा जिससे रक्षा की जाती हो, उसमें पञ्चमी विभक्ति होती
- जहाँ से किसी को हटाया जाता है, उसमें पञ्चमी विभक्ति होती है।
- जिससे विधिपूर्वक विद्या पड़ी जाती है, उसे अध्यापक में पञ्चमी विभक्ति होती है।
- ‘जन्’ धातु के कर्ता के कारण में पञ्चमी विभक्ति होती है।
- ‘भू’ धातु के उद्गम स्थान में पञ्चमी विभक्ति होती है।
- जिस स्थान से दूसरे स्थान की दूरी दिखाई जाती है, उस स्थान में पञ्चमी विभक्ति होती है।
- प्रभृति, आरभ्य, बहिः, अनन्तरम्, परम के योग में पञ्चमी विभक्ति होती है।
- जब दो वस्तुओं में तुलना की जाती है, तब जिससे तुलना की जाती है, उसमें पञ्चमी विभक्ति होती है। उदाहरण–
पाठ 11: सम्बन्ध (षष्ठी विभक्ति)
जब दो या अधिक शब्दों में सम्बन्ध दिखाया जाता है, तो उसे सम्बन्ध कहते हैं। सम्बन्ध में षष्ठी विभक्ति होती है। षष्ठी विभक्ति के चिह्न ‘का, के, की, रा, रे, रो, ना, ने, नी’ हैं। नियम-
- ‘क्त’ प्रत्ययान्त शब्दों के वर्तमानकालवाची होने पर षष्ठी विभक्ति होती है। यह बात ध्यान रखने योग्य है कि ‘क्त’ भूतकालिक प्रत्यय है।
- हेतु’ शब्द के प्रयुक्त होने पर ‘हेतु’ शब्द में तथा उसके ‘कारण’ अथवा ‘प्रयोजन’ में षष्ठी विभक्ति होती है।
- जिसका अनादर किया जाता है, उसमें षष्ठी अथवा सप्तमी विभक्ति होती है।
- समान या बराबर का अर्थ रखने वाले ‘समः’, ‘तुल्यः’, ‘सदृशः’ इत्यादि शब्दों के योग में जिससे तुलना की जाती है, उसमें षष्ठी या तृतीया विभक्ति होती है।
- ‘कृते’, ‘मध्ये’, ‘समक्ष’ आदि शब्दों के योग में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है।
- जब समूह में से किसी एक की विशेषता बताने के लिए उसे समूह से अलग किया जाता है उसमें षष्ठी अथवा सप्तमी विभक्ति होती है। उदाहरण–
पाठ 12: अधिकरण कारक (सप्तमी विभक्ति)
जिस स्थान पर कोई कार्य होता है, उसमें अधिकरण कारक होता है। अधिकरण कारक में सप्तमी विभक्ति होती है। इसके हि ‘में, पर, ऊपर हैं। उदाहरण–
सप्तमी विभक्ति-उपपद विभक्ति नियम
- जिस पर स्नेह किया जाता है, जिसमें भक्ति या विश्वास किया जाता है, उसमें सप्तमी विभक्ति होती है।
- जब किसी एक कार्य के हो जाने पर दूसरे कार्य का होना प्रतीत हो, तब पहले हो चुके कार्य में तथा उसके कर्ता में सप्तमी विभक्ति होती है।
- जिस समय कोई काम होता है तो समयवाचक शब्द को सप्तमी विभक्ति में रखा जाता है।
- जब किसी वस्तु की अपने समूह में विशेषता प्रकट की जाती है तो समूहवाचक शब्द में सप्तमी या षष्ठी विभक्ति होती है।
- कुशल, निपुण, पटु, साधु, असाधु, चतुर तथा संलग्न अर्थ वाले ‘युक्तः, लग्नः, तत्परः’ इत्यादि शब्दों के योग में सप्तमी विभक्ति होती है।
- जिसे कोई वस्तु समर्पित की जाती है, उसे सप्तमी विभक्ति में रखा जाता है। उदाहरण–
पाठ 13 : सम्बोधन का प्रयोग नियम
- जिसको पुकारा जाता है, उसमें सम्बोधन होता है। सम्बोधन में प्राय: प्रथमा विभक्ति के रूपों से पूर्व सम्बोधन के चिह्न लग जाते हैं।
- सम्बोधन के चिह्न ‘हे ! भो ! अरे !’ इत्यादि हैं। कभी-कभी ये चिह्न छिपे भी रहते हैं।
- यद्यपि सम्बोधन में प्रथमा विभक्ति के रूप प्रयुक्त होते हैं, किन्तु कुछ शब्दों के एकवचन में परिवर्तन हो जाता है; यथा-आकान्त स्त्रीलिंग शब्दों में अन्तिम ‘आ’ का ‘ए’ हो जाता है। यथा-‘रमा’ प्रथमा विभक्ति का एकवचन है, किन्तु सम्बोधन में रमे प्रयुक्त होता है।
- सम्बोधन के वाक्य प्रायः लोट् लकार में होते हैं। उदाहरण–
पाठ 14: सर्वनामों का प्रयोग
नियम- सर्वनामों का प्रयोग संज्ञाओं के स्थान पर होता है। इनका प्रयोग विशेषणों की भाँति भी होता है। जहाँ ये विशेषण के रूप में आते हैं, वहाँ इनके विभक्ति, वचन और लिंग विशेष्य के अनुसार होते हैं। युष्मद्, अस्मद्, तद्, एतद्, यद्, किम्, इदम्, अदस्, सर्व आदि शब्द सर्वनाम हैं। उदाहरण–
पाठ 15: विशेषणों का प्रयोग नियम
- विशेषणों के विभक्ति, वचन और लिंग अपने विशेष्य के अनुसार होते हैं।
- ‘मुझ जैसा’ और ‘तुझ जैसा’ आदि की संस्कृत बनाने के लिए इनके वाचक सर्वनाम शब्दों में ‘दृश’ जोड़ दिया जाता है। इनके लिंग, विभक्ति, वचन भी अपने विशेष्य के अनुसार प्रयुक्त किये जाते हैं। उदाहरण–
अनुवाद संस्कृत व्याकरण से
अभ्यास 1
प्रश्न 1.
निम्नलिखित पदों से वाक्य-रचना कीजिए
उत्तर:
प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध कीजिए
उत्तर:
प्रश्न 3.
निम्नलिखित धातुओं के प्रथम पुरुष में रूप बताइए
उत्तर:
अभ्यास 2
प्रश्न 1.
निम्नलिखित धातुरूपों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए
प्रश्न 2.
निम्नलिखित संस्कृत वाक्यों एवं उनके उत्तरों को ध्यान से पढ़िए
प्रश्न 3.
निम्नलिखित हिन्दी वाक्यों के संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
अभ्यास 3
प्रश्न 1.
निम्नलिखित धातुओं का इयम्, इमे, इंमाः के साथ प्रयोग कीजिए
उत्तर:
प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
उत्तर:
प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए
उत्तर:
प्रश्न 4.
निम्नलिखित वर्गों से उपयुक्त शब्द चुनकर वाक्य बनाइए
उत्तर:
प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्दों के स्त्रीलिंग में रूप बताइए
उत्तर:
प्रश्न 6.
निम्नलिखित हिन्दी वाक्यों को संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
अभ्यास 4
प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त-स्थानों की पूर्ति कीजिए
उत्तर:
प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध कीजिए
उत्तर:
प्रश्न 4:
निम्नलिखित हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
अभ्यास 5
प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों को पूर्ण कीजिए
उत्तर:
प्रश्न 3.
निम्नलिखित तालिका से उपयुक्त शब्द चुनकर वाक्य बनाइए– शिशवः, कृषकाः, यूयम्, सः, खगः; पास्यन्ति, गमिष्यन्ति, धाविष्यथ, क्रीडिष्यति, कूजिष्यति।
उत्तर:
शिशवः पास्यन्ति।
कृषका: गमिष्यन्ति।
यूयं धाविष्यथ।
सः क्रीडिष्यति।
खगः कूजिष्यति
प्रश्न 4.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए
उत्तर:
प्रश्न 5.
निम्नलिखित हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
अभ्यास 6
प्रश्न 1.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
उत्तर:
प्रश्न 2.
निम्नलिखित से चतुर्थी विभक्ति के रूप छाँटिए— मृगेभ्यः, मृगाय, विप्राय, विप्रैः, मित्रे, भवते, हरये, भूपतये, गुरवे, शिशुभ्यः।
उत्तर:
मृगेभ्यः, मृगाय, विप्राय, भवते, हरये, भूपतये, गुरवे, शिशुभ्यः।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध कीजिए
उत्तर:
प्रश्न 4.
निम्नलिखित हिन्दी वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
अभ्यास 7
प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों का संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
प्रश्न 3.
कृ धातु के विधिलिङ् लकार के रूप कण्ठस्थ कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 4.
निम्नलिखित हिन्दी वाक्यों को संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
अभ्यास 8
प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों में सप्तमी विभक्ति के शब्द छाँटिए
(अ) मीनाः जले निमज्जन्ति।
(आ) प्रकोष्ठे बालकाः पठन्ति।
(इ) वृक्षेषु खगाः कूजन्ति।
(ई) सः मातरि स्निह्यति।
(उ) ग्रीष्मे आतपः तीव्रः भवति।
उत्तर:
(अ) जले,
(आ) प्रकोष्ठे,
(इ) वृक्षेषु,
(ई) मातरि,
(३) ग्रीष्मे।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित हिन्दी वाक्यों को संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर:
अभ्यास 9
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के तीनों लिंगों में रूप लिखिए
उत्तर:
प्रश्न 2.
कोष्ठक में दिये हुए शब्दों से रिक्त-स्थानों की पूर्ति कीजिए
उतर:
प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध कीजिए
उतर:
प्रश्न 4.
अपनी पुस्तक से दस विशेषण लिखिए।
उत्तर:
नील, शोभन, रम्य, अभिराम, मलिन, कुलीन, प्रचुर, यादृश, तादृश, कीदृश।
प्रश्न 5.
पुस्तकालय पर पाँच वाक्य संस्कृत में लिखिए।
उत्तर:
- पुस्तकानाम् आलयः पुस्तकालयः कथ्यते।
- निजीपुस्तकालयः सार्वजनिकपुस्तकालयः च इमौ द्वौ भेदौ स्तः।
- पुस्तकालये एकः पुस्तकालयाध्यक्षः भवति।
- अत्रे विविधानि पुस्तकानि सन्ति।
- जनाः अत्र पठनाय आगच्छन्ति
प्रश्न 6.
निम्नलिखित हिन्दी वाक्यों को संस्कृत में अनुवाद कीजिए
उत्तर: